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ये ग़ज़ल नहीं है देश का बयान है

ये  ग़ज़ल नहीं है देश का बयान है, 

डूबते जहाज की ये दास्तान है।

लुट रही है कहकहाें के बीच अाबरु, 

धर्तीपुत्र अाज माैन, बेजुबान है।

गर्व था उन्हें कि बन गये जगतपिता, 

गर्भ में ही मर चुका वाे संविधान है। 

हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई, 

हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है। 

घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके, 

बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है। 

लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना ? 

दिल किसी किले की भाँति सूनसान है।

कृष्णसिंह पेला

(माैलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Krishnasingh Pela on April 18, 2014 at 10:17pm

धन्यवाद अा.भुवन जी अापने इस गजल की मात्रात्मक संरचना का उल्लेख कर इस के वाचन काे काफी सहजता प्रदान की है ।  

Comment by भुवन निस्तेज on April 18, 2014 at 8:10pm

यह गजल २१२१ २१२१ २१२१ २ मात्रा पर रचित है...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2014 at 2:59pm

कुछ तकनीकी कारणों से मेरी प्रतिक्रिया आपको नहीं दिख रही होगी, अन्यथा वह आपके ही पोस्ट पर उपलब्ध है, आदरणीय.

सादर

Comment by Krishnasingh Pela on April 8, 2014 at 2:57pm

अादरणीय  Saurabh Pandey साहब इस गजल पर अापकी प्रतिक्रिया पाकर मैं धन्य हाे गया था । मैने पढा भी था परंतु अभी दुर्भाग्यवश अापकी प्रतिक्रिया दिखाइ नहीं दे रही है । माफ कीजिएगा मैं अापके अाेबीअाे प्राेफाइल से उक्त प्रतिक्रिया काे copy कर के यहाँ paste कर रहा हूँ : 

"एक कामयाब कोशिश के लिए बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय. इन अश’आर पर विशेष बधाइयाँ -

हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई, 

हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है। 

घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके, 

बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है। 

लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना,

 दिल किसी किले की भाँति सूनसान है ।"

गजब ! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2014 at 3:56am

एक कामयाब कोशिश के लिए बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय.

इन अश’आर पर विशेष बधाइयाँ -

हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई, 

हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है। 

 

घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके, 

बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है। 

 

लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना ? 

दिल किसी किले की भाँति सूनसान है।

ग़ज़ब !

Comment by Krishnasingh Pela on April 6, 2014 at 8:21pm

अादरणीय  BHUWAN NISTEJ जी,  coontee mukerji जी,  गिरिराज भंडारी जी, एवम्  विजय मिश्र  जी, अाप लाेगाें का बहुत बहुत अाभार । अा‍. गिरिराज भंडारी जी इस गज़ल की मात्रात्मक संरचना २१ २१ २१ २१ २१ २१ २ है । अब इनकाे अागे पीछे कैसे संयाेजन कर के काैन से बह्र का नाम दें यह अलग बात है । 

Comment by विजय मिश्र on April 1, 2014 at 3:45pm
हकीकत में आपने बेरुखी से देश के हालात की अच्छी बयानी कियी है | अनेक बधाई श्रीकृष्णजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 1, 2014 at 10:43am

आदरणीय कृष्ण सिंग भाई , सुन्दर गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ , बह्र का उल्लेख ज़रूर कर दिया कीजिये ॥

Comment by coontee mukerji on March 31, 2014 at 5:13pm

हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई, 

हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है। .....बहुत खूब.

Comment by भुवन निस्तेज on March 30, 2014 at 8:17am

घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके, 

बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है। 

लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना ? 

दिल किसी किले की भाँति सूनसान है।

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