For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चादरें छोटी मिली हैं किश्मतों की-ग़ज़ल

2122    2122    2122  

***
आदमी  को  आदमी  से  बैर  इतना
भर रहा अब खुद में ही वो मैर इतना

*
दुश्मनो  की  बात  करनी व्यर्थ है यूँ
अब  सहोदर  ही  लगे  है गैर इतना

*
चादरें  छोटी  मिली हैं  किश्मतों की
इसलिए भी मत  पसारो  पैर इतना

*
दे रहे  आवाज  हम  हैं  बेखबर  तुम
कर  रहे  हो किस  जहाँ  में सैर  इतना

*
किस तरह आऊं बता तुझ तक अभी मैं
गाव! उलझन  दे  गया  है  नैर  इतना

*
झूठ  होते  हैं  सियासत  के  ये  वादे
इन  भरोसे  मत  हवा  में तैर इतना

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by भुवन निस्तेज on March 31, 2014 at 8:23am

Sabhi sher khas hai par makte ki bat to kya kariye

झूठ  होते  हैं  सियासत  के  ये  वादे
इन  भरोसे  मत  हवा  में तैर इतना

Aur ye sher to hasil-e- gazal thahre shayad...

चादरें  छोटी  मिली हैं  किश्मतों की
इसलिए भी मत  पसारो  पैर इतना

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 29, 2014 at 6:52am

आदरणीय भाई सौरभ जी , दाद देने के लिए हार्दिक आभार .आपके दो शब्द निरंतर बेहतर लिखने के लिए प्रेरित करते हैं .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 11:44pm

इस ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल करें,भाईजी.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 27, 2014 at 10:44am

आदरणीय भाई ओमप्रकाश जी ग़ज़ल कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 27, 2014 at 10:44am

आदरणीय भाई गिरिराज  जी ग़ज़ल कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 27, 2014 at 10:43am

आदरणीय भाई विजय  जी ग़ज़ल कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 27, 2014 at 10:42am

आदरणीय सरिता जी ग़ज़ल कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 27, 2014 at 10:40am

आदरणीय जितेंद्र भाई ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए आभार.

Comment by Omprakash Kshatriya on March 26, 2014 at 8:40pm
चादरें छोटी मिली हैं किश्मतों की
इसलिए भी मत पसारो पैर इतना...........................बधाई .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2014 at 6:07pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये आपको बहुत बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
4 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
6 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service