(१ )
भारत की हम नार, बढ़ें खुद आज लिए नव छत्र चलो|
जीवन में अब हार, सहें मत ख़ार लिखें इक पत्र चलो|
ले कर में पतवार, करें तट पार रचें नव सत्र चलो|
साथ मिला कर हाथ, सधे हर काज बने शतपत्र चलो||
(2)
जीवन में नित प्यार, रहे दरकार बढ़े नव प्रीत चलो|
वर्ण मिलाकर आज, चलें इक साथ रचें इक गीत चलो||
पाँव बढ़े इक साथ, सभी नर नार बनें सत मीत चलो|
एक नया इतिहास, लिखें हम आज मिले नव जीत चलो||
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय गिरिराज जी,आपकी प्रतिक्रिया से प्रस्तुति धन्य हुई दिल से आभारी हूँ.
आदरणीया राजेश जी ..बहुत ही शानदार छंद लिखा है आपने ..नारी उत्कर्ष और जागृति का प्रतीक ये छंद समाज के प्रति साहित्यकार के दायितवों का भी बखूबी निर्बहन कर रहे हैं मेरी तरफ से हार्दिक बधाई के साथ ..सादर
पाँव बढ़े इक साथ, सभी नर नार बनें सत मीत चलो|
अति आवश्यक, सुन्दर अवाहन आदरणीया सादर
वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |
आदरणीया राजेश जी , लाजवाब मदिरा सवैया छंद रचना हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
आदरणीय सौरभ जी, सब कुछ आप विद्वद जनो के मार्गदर्शन का ही परिणाम है, आपकी सराहना पाकर ये प्रस्तुति धन्य हुई ,हृदय तल से आभार आपका.
इस उत्कृष्ट छंद रचना के लिए हार्दिक बधाइयाँ आदरणीया राजेशजी.
सही कहूँ, तो एक अरसे बाद आपकी इतनी सधी हुई कोई छंद रचना आयी है. कथ्य ही नहीं शिल्प के अनुसार भी आपने उन्नत रचनाकर्म किया है, आदरणीया.
सादर
विवेक झा जी, प्रस्तुति ने आपको प्रभावित किया मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका.
आ० अखिलेश कृष्ण जी आपकी सराहना पाकर आश्वस्त हुई ,मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका.
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