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कुछ कह-मुकरियाँ ..............डॉ० प्राची

क़दमों में दे बहकी थिरकन

महकी नम सी चंचल सिहरन  

बाँहों भर ले, रच कर साजिश 

क्या सखि साजन? न सखि बारिश 

हर पल उसने साथ निभाया 

संग चले बन कर हम साया 

रंग रसिक नें उमर लजाई 

क्या सखि साजन? न सखि डाई

चाहे मीठे चाहे खारे 

राज़ पता हैं उसको सारे 

खोल न डाले राज़, हाय री ! 

क्या सखि साजन? न सखि डायरी 

उसने सारे बंध सँजोए

अंक समेटे प्रेम पिरोए 

ज़िंदा है यादों से हरदम 

क्या सखि साजन? न सखि एल्बम 

आँसू देखे, झट गल जाए 

रख लूँ उसको नयन बसाए 

रूप निखारे कंचन कंचन 

क्या सखि साजन? न सखि अंजन 

 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Shyam Narain Verma on February 22, 2014 at 4:05pm
शानदार रचना आदरणीया बहुत२ बधाई ............................
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 22, 2014 at 11:28am

सुन्दर भाव रचित कह्मुकरिया रचना के लिए हार्दिक बधाई डॉ प्राची सिंह जी | सादर 

Comment by Neeraj Neer on February 22, 2014 at 9:00am

बहुत ही सुन्दर मुकरियां ... बहुत बधाई .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 22, 2014 at 8:58am

बहुत सुंदर कह-मुकरियां , हार्दिक बधाई आपको आदरणीया डा.प्राची जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 21, 2014 at 10:55pm

आदरणीय अरुण निगम जी 

इन कह मुकरियों पर आपकी दृष्टि के लिए आपकी सादर आभारी हूँ..

बाँहों में टंकण त्रुटि बताने के लिए धन्यवाद ..

साजिश और बारिश का तुक मुझे तो बिलकुल सही लगा हाँ गहरी और डायरी में सम्तुकान्तता होने के बावजूद भी गेयता अलग ज़रूर है क्योंकि एक चौकल है और एक पंचकल शब्द... गहरी का उच्चारण २२ और डायरी का २१२ हो रहा है.

उस मुकरी में परिवर्तन कर दिया है , कृपया देखे और अपनी राय से अवगत कराएं

सादर.

Comment by कल्पना रामानी on February 21, 2014 at 10:07pm

वाह, वाह!! कमाल कर दिया आपने आदरणीया प्राची जी। बहुत बहुत बधाई आपको। गहरी और डायरी का समांत मुझे भी समझ में नहीं आया। और आदरणीय अरुण  निगम जी ने बारिश/साजिश पर भी शंका प्रगट की है, यहाँ इस प्रकार की समांतता तो हर छंद में है, इस पर भी वरिष्ठ विद्वानों की राय जानना चाहूंगी।

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 21, 2014 at 9:20pm

आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी सादर, बहुत सुन्दर कह-मुकरी छंद रहे हैं. सादर बधाई स्वीकारें. किन्तु गहरी और डायरी में लय की समानता नहीं आ रही है.सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on February 21, 2014 at 9:08pm

आदरणीया , संतुलित व सुगढ़ कह-मुकरियाँ।

बाहों का शुद्ध रूप "बाँहों" ................देख लें

साजिश और बारिश / गहरी और डायरी का तुकांत क्या मान्य होगा ?

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 21, 2014 at 7:46pm

आपके अनुमोदन से रचना पर आपकी उपस्थिति का पता चला... समय देने के लिए सादर आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 21, 2014 at 7:40pm

आदरणीया प्राची जी , लाजवाब कह मुकरियों के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

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