इस विधा में मेरा प्रथम प्रयास(1से 10)
1)
रखती उसको अंग लगाकर।
चलती उसके संग लजाकर।
लगे सहज उसका अपनापन।
क्या सखि, साजन?
ना सखि, दामन!
2)
दिन में तो वो खूब तपाए।
रात कभी भी पास न आए।
फिर भी खुश होती हूँ मिलकर।
क्या सखि साजन?
ना सखि, दिनकर!
3)
वो अपनी मनमानी करता।
कुछ माँगूँ तो कान न धरता।
कठपुतली सा नाच नचाता।
क्या सखि साजन?
नहीं, विधाता!
4)
भरी भीड़ में पास बुलाया।
गोद उठाकर चाँद दिखाया।
मन पाखी बन सुध-बुध भूला।
क्या सखि साजन?
ना री झूला!
5)
दूर-दूर के नवल नज़ारे।
उसकी आँखों देखूँ सारे।
कभी न देता मुझको धोखा।
क्या सखि साजन?
नहीं, झरोखा!
6)
रातों को वो मिलने आता।
नित्य नया इक रूप दिखाता।
लाज न आए, कैसा बंदा,
क्या सखि साजन?
ना सखि, चंदा!
7)
आते जाते मुझे निहारे।
पल-पल मेरा रूप सँवारे।
भला लगे उसका चिकना तन।
क्या सखि साजन?
ना सखि दर्पन!
८)
साथ चले जब सीना ताने।
बात न वो फिर मेरी माने।
हाथ छुड़ाकर भागा जाता।
क्या सखि साजन?
ना सखि, छाता!
9)
जब तब कर्कश बोल सुनाए।
मुँह खोले तो जी घबराए।
पाहुन को दे रोज़ बुलौवा।
क्या सखि, साजन?
ना सखि, कौवा!
10)
उसका काला रंग न भाए।
गुण भी कोई नज़र न आए।
फिर भी लट्टू है उसपे मन।
क्या सखि साजन?
ना सखि, बैंगन!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
क्या बात है दी .. आनंद आ गया पढ़ कर ... बहुत बहुत बधाई स्वीकारें | सादर
वो अपनी मनमानी करता।
कुछ माँगूँ तो कान न धरता।
कठपुतली सा नाच नचाता।
क्या सखि साजन? नहीं, विधाता!
बहुत सार्थक कह-मुकरियाँ, बधाई स्वीकारें आदरणीया कल्पना जी
हार्दिक धन्यवाद वंदना जी/सादर
बहुत सुन्दर आदरणीया ग़ज़ब की रचनाएं हैं
प्रिय शशि, आपके अनुमोदन से अपार हर्ष हुआ। आपका हृदय से धन्यवाद
आदरणीय गिरिराज जी, रचना की सराहना करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय योगराज जी, आपका कहा एक एक शब्द सटीक है। पढ़ने में बहुत आसान लगती हैं, लेकिन काफी मेहनत और मशक्कत माँगती हैं। मैं चाहती हूँ कि इस मंच के सभी सदस्य विधा के साथ न्याय करते हुए इसमें रुचि दिखाएँ। आपके अनुमोदन से मुझे बहुत बल मिला है। अब यह सफर जारी रहेगा।
आपका हार्दिक आभार।
तक़रीबन तीन साल पहले जब कह-मुकरी को डाइलिसिस से उठाने का काम हमारे ही ओबीओ मंच ने किया था, तब से लेकर आज तक इस विधा को पुनर्स्थापित करने हेतु अनेक प्रयास हुए हैं जो इस बात की तरफ इशारा है कि यह विधा दोबारा रचनाकारों और पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल रही है. कई गम्भीर रचनाकारों द्वारा इस पर कलम आज़माई करना एक शुभ लक्षण है. इन रचनाकर्मियों ने न केवल इस विधा के मूल स्वरूप को ही अक्षुण्ण रखा है बल्कि बेहद सार्थक रचनाएँ भी कहीं हैं. दूसरी तरफ एक बहुत बड़ा धड़ा ऐसा भी है जो बिना इसके रूप विधान को समझे धड़ल्ले से कह-मुकरी के नाम पर बेतुकी और ऑल-फॉल तुकबंदियाँ परोस रहा है. पप्पू, फेंकू, दिग्गी तक तो इन अहमकों ने अपने साजन बना लिए हैं, अब ये सब देखकर कोई सर न धुन ले तो और क्या करे ?
दरअसल, अपने चुलबुले स्वाभाव और सरल सी रूप रेखा के कारण कह-मुकरी देखने में भले ही एक आसान विधा प्रतीत होती हो, किन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। दरअसल, कह-मुकरी को कहने और मुकरने के दो बहुत ही कठिन पड़ावों से गुज़ारना होता है. पहले तीन चरणों में जो कहा जाता है चौथे चरण में उसी से मुकर जाना होता है. मुनकर भी कुछ यूँ होना होता है कि इस "इकरार और इनकार" की प्रक्रिया के मध्य एक सामंजस्य दृष्टिगोचर हो. यानि बात साजन की ही की जाती है मगर पूछे जाने पर उस बात से साफ़ साफ़ इनकार कर दिया जाता है. कहना और मुकरना एक दूसरे को एक कुशन देते हैं.
आ० कल्पना रामानी जी की सभी कह-मुकरियों में ही यह इकरार और इनकार मुखरित हुआ है जोकि इस विधा की सुंदरता ही नहीं बल्कि ज़रूरी शर्त भी है. इस विधा पर इतना सार्थक काम होते देख मुझ से ज़यादा प्रसन्न व गर्वित भला और कौन होगा ? इस सुन्दर और नाज़ुक सी काव्य बानगी को पुन: मेंन स्ट्रीम में लाने के भागीरथ प्रयास में अपना महती योगदान डालने के लिए मैं आद० कल्पना रामानी जी को बहुत बहुत बधाई देता हूँ.
आदरणीया कल्पना जी , कहीं से प्रथम प्रयास नही लग रही है रचाना , खूब सधी हुई सुन्दर मुकरियाँ बन पड़ी हैं ॥ सभी एक से बढ के एक हैं , हार्दिक बधाई स्वीकार करें ॥
वाह कल्पना जी बहुत सुन्दर मुकरिया कही है आपने ,
यह दो बहुत अच्छी लगी
वो अपनी मनमानी करता।
कुछ माँगूँ तो कान न धरता।
कठपुतली सा नाच नचाता।
क्या सखि साजन? नहीं, विधाता!
बीच शहर में मुझे बुलाता।
गोद उठाकर चाँद दिखाता।
सजा-धजा ज्यों कोई दूल्हा।
क्या सखि, साजन? ना सखि झूला!
हार्दिक बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online