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दें बिदाई आज तुम्हे, है परीक्षा की घड़ी ।
सीख सारे जो हमारे, तुम्हरे मन में पड़ी ।।
आज तुम्हे तो दिखाना, काम अब कर के भला ।
नाम होवे हम सबो का,  हो सफल तुम जो भला ।।

हर परीक्षा में सफल हो, दे रहे आशीष हैं।
हर चुनौती से लड़ो तुम, काम तो ही ईश है ।।
कर्म ही पूजा कहे सब, कर्म पथ आगे बढो ।
जो बने बाधा टीलाा सा, चीर कर रास्ता गढ़ो ।।

----------------------------------------------------

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by रमेश कुमार चौहान on February 13, 2014 at 7:35pm

आदरणीय  महिमाश्रीजी एवं आदरणीय गीतजी हौसलाआफजाई के लिये शुक्रिया

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 13, 2014 at 7:31pm

आदरणीया दीदीजी, कथ्य अस्पष्ट प्रतित हो रहा है इस बात से मै सहमत हू , इसे मै स्कूली बच्चों के बिदाई समारोह के लिये लिखा जहां इसके पठन से संदर्भगत परेशानी नही हुई किन्तु यहां पर तो है, इस बात का खेद है।  मात्रा गणना मे जिस भार संबंधी ज्ञान साझा किया गया  उस से मै परिचित नही था, आगे इस तथ्य को ध्यान में रखूगा । इसी प्रकार सुझाव देते रहियेगा सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 13, 2014 at 5:03pm

आ० रमेश कुमार चौहान जी..

गीतिका छंद एक बहुत ही मधुर छंद है, २१२२ २१२२, २१२२ २१२ की आवृति में यह छंद चलता है 

किसी भी अच्छे कार्य को करने के लिए अपनों से विदा लेकर किसी के चलने का कथ्य है और सस्कारों की परीक्षा की भी घड़ी है इस कथ्य पर आपने लिखने का प्रयत्न किया है..पर कथ्य में बहुत अस्पष्टता है, कि किसे विदा किया जा रहा है , कहाँ के लिए और क्यों? ये भी थोडा स्पष्ट होना चाहिए था .

कई जगह व्याकरणिक त्रुटियाँ भी रह गयी हैं , और कुछ शब्दों में भी मूल स्वरुप को परिवर्तित किया गया है, तुम्हे की मात्रा गणना २+२=4 की जगह 1+२ =३ ली जाती है क्योंकि तुम्हे के उच्चारण में आधे म का भार तु पर नहीं पढता है , उन्हें , कन्हैया आदि कुछ ऐसे शब्द है जिनकी मात्रा में अर्ध मात्रा का भार पहले वाले अक्षर पर नहीं पड़ता है...इन सब बातों पर ध्यान अवश्य ही दें !

इस प्रयास के लिए मेरी शुभकामनाएं 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 12, 2014 at 9:41am

बहुत सुंदर सार्थक रचना आदरणीय रमेश जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by MAHIMA SHREE on February 11, 2014 at 10:30pm

सुंदर भावाभिव्यक्ति.. बधाई आ. रमेश जी सादर

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 9:18pm

आदरणीय गिरिराज भैयाजी सादर आभार, गेयता में सुधार हेतु प्रयासरत हूं सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 8:59pm

आदरणीय रमेश भाई , बहुत सुन्दर भावों से सजी आपके छंद रचना के लिये आपको बधाई !! बस गेयता कुछ खटक रही है कहीं पर ॥

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 7:47pm

आदरणीय वर्माजी एवं आदरणीया द्वैय मीनाजी एवं कुंतीजी आपलोगो के उत्सावर्धन से रचनाकर्म को बल मिला । सादर आभार

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 7:45pm

अंतिम पंक्ति के प्रथम चरण में मात्रिक विन्यास में त्रुटि रह गई है अत: "जो बने बाधा टीलाा सा" को "पर्वते बाधा बने जो" पढने की कृपा हो ।

Comment by coontee mukerji on February 10, 2014 at 3:29pm

सुंदर छंद.हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

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