सूरज
जब छाए मन में निराशा,
तब सोचो उस सूरज को,
जो रोज डूबता है पर,
उगता फिर नई सुबह है ।
नई ऊर्जा ,नए उत्साह से,
बाँटता है खुशी अपनी,
मिट जाए दुनिया का अंधकार,
प्रकाश इसीलिये फैलाता है ।
तेज आभा ,प्रसन्न मुख ,
मजबूती की शिक्षा देते हैं,
खड़े हो जाओ,डटकर के,
कर्म का पाठ पढ़ाता है ।
न हारो और न रुको कभी,
संघर्ष करो तुम लगातार ,
टिक पाये नहीं सामने कोई,
तेज ऐसा पाने को कहता है ।
बाँटो सिर्फ खुशी अपनी,
कष्ट छिपाने को कहता है,
दुःख सुख हैं सबके जीवन में,
स्वीकार करने को कहता है ।
सूरज का अंश हो तुम,
तेज अपना प्रकट करो,
हल्के हवा के झोंको से,
पत्ते की भाँति मत हिला करो ।
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी,भंडारी जी,मुखर्जी मैडम,पाठक मैडम,श्याम नारायण वर्मा जी,प्राची सिंह मैडम , आप सभी का बहुत-बहुत आभार |प्राची सिंह मैडम, आपकी सलाह भविष्य के लेखन के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी |
आ० अखिलेश जी
एक अरसे बाद आपकी प्रस्तुति मंच पर दीख रही है...
निराशा को दूर हटा हौसला रख आगे बढने का सन्देश देती आपकी रचना का कथ्य सुन्दर है प्रभावी है ..जिसके लिए आपक हृदयतल से बधाई ..
पर शिल्प !!!
शिल्प का क्या किया भाई जी? इस प्रस्तुति में गद्यात्मकता बहुत हावी लगी मुझे और तुकांतता पर भी बहुत ध्यान देने की ज़रुरत है.. सजग पाठन और सतत लेखन अभ्यास बहुत कुछ स्वतः ही साधता चलता है.
शुभेच्छाएं
सुन्दर और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय , सुन्दर सदेश देती आपकी रचना के लिये आपको बधाई ॥
सूरज का अंश हो तुम,
तेज अपना प्रकट करो,
हल्के हवा के झोंको से,
पत्ते की भाँति मत हिला करो ।.....बहुत ही सुंदर विचार है. शुभकामनाएँ.
सुन्दर रचना .. बधाई
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ.... |
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