For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सिर्फ सूरत आइना हो - (ग़ज़ल)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122     2122    2122     2122

***********************************
दीप  को जलना  नहीं है  भूल से  भी  द्वार मेरे
आप नाहक  कोशिशें क्यों  कर रहे हो  यार मेरे


खून हाथों पर लगा है किन्तु कातिल मैं नहीं हूँ
फूल से  अठखेलियों में  चुभ गये  थे  खार मेरे


छा गया है आजकल जो इस मुहब्बत में कुहासा
क्या  बताऊँ   आपको   मैं   देवता  बीमार  मेरे


दीन में रखना मुझे क्यों आप फिर भी चाहते हो
मयकदे में  भेज  बदले  जब  सदा  आचार  मेरे


ये  जरूरी  तो  नहीं  है  सिर्फ  सूरत  आइना हो
आपको  लगते  बुरे क्यों  हर समय आसार मेरे


बिन मरे ही सच बनूंगा मैं मुहब्बत का खुदा भी
अब ‘मुसाफिर’ कमसिनों से जुड़ गये हैं तार मेरे


किसलिए महफिल तुम्हारी छा गयी खामोशियाँ यूं
क्या  दिलों में  आपके  भी चुभ गये असआर मेरे

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 490

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 9, 2014 at 7:46pm

भाई पाठक जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 9, 2014 at 7:45pm

भाई बृजेश जी , प्रशंसा के लिए धन्यवाद .

Comment by ram shiromani pathak on February 8, 2014 at 12:10pm

बहुत प्यारी ग़ज़ल लगी मुझे। हार्दिक बधाई आपको आदरणीय 

Comment by बृजेश नीरज on February 8, 2014 at 11:53am

अच्छी ग़ज़ल है! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2014 at 7:30am

आदरणीय भाई गिरिराज जी ,  आपने सही फ़रमाया l हो कि जगह हैं अधिक उपयुक्त लग रहा है .सुधार कर लूगा .अशआर में टंकण कि त्रुटि कि और ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक  धन्यवाद . ग़ज़ल आपको भा  गयी .रचना कर्म सार्थक होता लग रहा है l आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2014 at 7:58pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल खूब सूरत कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥  बस कई मिसरों मे आप के साथ  हो लिखा है आपने जैसे - दीन में रखना मुझे क्यों आप फिर भी चाहते हो, मुझे लगता है , दीन में रखना मुझे क्यों आप फिर भी चाहते हैं  , कहना शायद ज्यादा सही हो ।एक बार सोच लीजियेगा ॥

किसलिए महफिल तुम्हारी छा गयी खामोशियाँ यूं
क्या  दिलों में  आपके  भी चुभ गये असआर मेरे  - ये शे र बहुत पसन्द आया भाई जी , बधाई ॥ असआर को अशआर  कर लीजियेगा ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2014 at 5:49am

आदरणीया कुंती बहन , ग़ज़ल कि  प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by coontee mukerji on February 6, 2014 at 10:26pm


ये  जरूरी  तो  नहीं  है  सिर्फ  सूरत  आइना हो
आपको  लगते  बुरे क्यों  हर समय आसार मेरे.....बहुत सुंदर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service