For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन कार्यालय हुआ : पाँच दशा // --सौरभ

1)
मन उदास है
पता नहीं, क्यों..

झूठे !
पता नहींऽऽ, क्योंऽऽऽ..?

2)
कितना अच्छा है न, ये पेपरवेट !
कुर्सी पर कोई आये, बैठे, जाये
टेबुल पर पड़ा
कुछ नहीं सोचता.. न सोचना चाहता है
प्रयुक्त होता हुआ बस बना रहता है

निर्विकार, निर्लिप्त
बिना उदास हुए

3)
हाँ, चैट हुई
पहले से उलझे कई विन्दु क्या सुलझते
कई और प्रश्न बोझ गयी.

अपलोड कर लेने के बाद ऑफ़िशियल मेल / जरूरी रिपोर्ट
आँखें बन्द कर
पीछे टेक ले
थोड़ी देर निष्क्रिय हो जाना
कोई उपाय तो नहीं,

और, कोई उपाय भी तो नहीं..
अभी !

4)
उम्मीदें भोथरी छुरी होतीं हैं
एक बार में नहीं
रगड़-रगड़ कर काटतीं हैं
फिर भी हम खुद को

और-और सौंपते चले जाते हैं उसके हाथों
लगातार कटते हुए

5)
वो साथ का है
पता नहीं !
वो ’स्सा.. ’   थका है
हाँ पता है.. !!


************
--सौरभ
************

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 615

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2014 at 11:03pm

मन कार्यालय हुआ के बिम्बों को सार्थक अनुमोदन मिला इस हेतु समस्त आत्मीयजनों को मेरा हार्दिक आभार.

सादर

Comment by कल्पना रामानी on February 11, 2014 at 10:28am

कितना अच्छा है न, ये पेपरवेट !
कुर्सी पर कोई आये, बैठे, जाये
टेबुल पर पड़ा
कुछ नहीं सोचता.. न सोचना चाहता है
प्रयुक्त होता हुआ बस बना रहता है

निर्विकार, निर्लिप्त
बिना उदास हुए

एकाकी  क्षणों में उपजे गहन चिंतन के भाव और सुंदर बिंबों के साथ कविता का जन्म!  पूरी रचना गहरा प्रभाव छोडने में समर्थ है इस बेमिसाल कृति  के लिए  आपको हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ जी

Comment by ram shiromani pathak on February 8, 2014 at 12:25pm

4)
उम्मीदें भोथरी छुरी होतीं हैं 
एक बार में नहीं 
रगड़-रगड़ कर काटतीं हैं 
फिर भी हम खुद को 

और-और सौंपते चले जाते हैं उसके हाथों 
लगातार कटते हुए ///////////

बहुत ही सुन्दर , वाह क्या ? चित्रण किया है अपने।।।।।।।।।।
आदरणीय सौरभ जी बहुत बहुत बधाई आपको। । सादर

Comment by Neeraj Neer on February 7, 2014 at 8:14pm

बहुत सुन्दर , अलग किस्म की प्रस्तुति , एक नए आयाम के साथ , पेपर वेट का बिम्ब बहुत निखर कर आया है , काश हम भी पेपर वेट की भांति निर्विकार , निर्विकल्प रह पाते .. सुन्दर रचना ..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2014 at 1:28pm

आदरणीय सौरभ सर ..आपकी रचनाओं की विविधता , गंभीरता और संकेतात्मकता मुझे बेहद भाती है . आज की यह रचना भी अत्यंत गहन है  थोडा थोडा समझ भी रहा हूँ पर पूरी तरह समझ नहीं पा रहा हूँ ....प्रयास रत हूँ ..  सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 7, 2014 at 12:37pm

आदरणीय सौरभ जी 

कार्यालयी जीवन से परिचित हर व्यक्ति इन दशाओं से अवश्य ही गुज़रता है..

पेपरवेट की निर्लिप्तता हो या ओफ़िशियल चैट के बोझ से लाद जाने के बाद की मानसिक दशा हो या फिर उम्मीदों के हाथों कटते जाने की पीड़ा का मुखर हो उठना.. इन सब चित्रों ने बहुत प्रभावित किया. पहला शब्दचित्र भी लाजवाब है और चौथा वाला तो बहुत प्रभावी है.

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2014 at 1:30am

आपको यह प्रस्तुति पसंद आयी यह सुन कर मुझे भलालगा. आपकी सदाशयता के लिये हृदय से बधाई, भाई रमेशजी..

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 4, 2014 at 8:54pm

कार्यालयीन श ब्दों से मन की दशा अध्यात्म चिंतन को उदृधृत इस रचना हेतु आदरणीय आपको कोटि कोटि बधाई

विशेषकर - उम्मीदें भोथरी छुरी होतीं हैं
एक बार में नहीं
रगड़-रगड़ कर काटतीं हैं
फिर भी हम खुद को
और-और सौंपते चले जाते हैं उसके हाथों
लगातार कटते हुए---------------------------------कटु सत्य


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2014 at 4:01am

जो अच्छा लगा उसके लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया

:-))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2014 at 4:00am

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय गिरिराज भाईजी..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. भाई महेन्द्र जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की सलाह से यह और…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
5 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
5 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
6 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
6 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय euphonic amit जी आपको सादर प्रणाम। बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय त्रुटियों को इंगित करने व…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से हर बात बताने समझाने कनलिये सुधार का प्रयास…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय, अमित जी, आदाब आपने ग़ज़ल तक आकर जो प्रोत्साहन दिया, इसके लिए आपका आभारी हूँ ।// आज़माता…"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service