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कहो तुम चाँद से इतना (ग़ज़ल ) - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222 1222  1222 1222


हमारी प्यास ले जाओ, जरा सूरज घटाओं तक
समय इतना नहीं बाकी, खबर भेजें हवाओं तक


तुम्हारी कोशिशें थी नित, यहाँ केवल दवाओं तक
हमारा भाग भा खोटा, न जा पाया दुआओं तक


कहाँ से भेजता रब भी, मदद को रहमतें अपनी
पहुचनें ही न पायी जब, सदा मेरी खलाओं तक


कहो तुम चाँद से इतना, सितारों रोशनी मकसद
रहा मत कर सदा इतना, सिमटकर तूँ कलाओं तक


सुना है हो गये हो अब, खुदा तुम भी मुहब्बत के
हमारी हद सहन तक ही, तुम्हारी हद सजाओं तक


खड़ा है वट बिजन में अब, सताता है अकेलापन
पठाओ ये खबर झटपट, खफा बैठी लताओं तक

‘मुसाफिर’ हो सरल जाता, सफर सच में मुहब्बत का
बढ़ा लेते अगर तुम भी , कदम कुछ इन वफाओं तक


मौलिक और अप्रकाशित
23.01.2014

Views: 570

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2014 at 7:26pm

आदरणीय मोहिनी बहन , ग़ज़ल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद . आप लोगों का स्नेह और मार्गदर्शन ही कुछ सीखने और आगे बढ़ने का अवसर देगा .

Comment by mohinichordia on January 26, 2014 at 3:10pm

हमारी हद सहन तक ही तुम्हारी हद सजाओं तक ....अन्तिम दो पंक्तियाँ भी   ..प्रशंसनीय  रचना | बधाई आपको  लक्ष्मण धामी जी .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2014 at 5:50am

आदरणीय अखिलेश जी , प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

भाग भा कि जगह भाग था पढ़ें गलती से  टंकण कि त्रुटि रह गयी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 25, 2014 at 5:43pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई,

मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।पर   ' भाग भा '  का अर्थ  समझ नहीं पाया ? ... सादर  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2014 at 6:06am

आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद. आप जैसे प्रबुद्ध जनों का मार्गदर्शन मिलता रहे यही आकांक्षा है . पुनः हार्दिक धन्यवाद.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 24, 2014 at 11:22am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सभी अशआर अच्छे बने हुए है सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 24, 2014 at 5:44am

आदरणीय भाई गिरिराज जी . ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद  .मैं आपसे जानना चाहूना की क्या कलापक्ष ठीक है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 24, 2014 at 5:41am

आदरणीय सरिता बहन ग़ज़ल की प्रशंसा क्र उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 24, 2014 at 5:39am

आदरणीय अरुण भाई ग़ज़ल की सराहना के लिए आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 23, 2014 at 8:50pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , लाज्वाब ग़ज़ल कही है , आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकार करें ॥

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