For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाग रे मन !

कब तक यूं ही सोएगा

जग मे मन को खोएगा

अब तो जाग रे मन !!

1)

सत्कर्मों की माला काहे न बनाई

पाप गठरिया है  सीस  धराई  

जाग रे !!!!

2)

माया औ पद्मा कबहु काम न आवे

नात नेवतिया साथ कबहु न निभावे

जाग रे !!!!

3)

दिवस निशि सब विरथा ही गंवाई

प्रीति की रीति अबहूँ  न निभाई

जाग रे !!!!!

4)

सारा जीवन यही जुगत लगाई

मान अभिमान सुत दारा पाई

जाग रे !!!!

5)

अब काहे मनवा रह रह काँपे  

जब लगाय रहे लेवइया हाँके

जाग रे !!!!!

कब तक यूं ही सोएगा

जग मे मन को खोएगा 

अब तो जाग रे मन !!

 

 अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on January 21, 2014 at 10:26pm

आदरणीय बृजेश जी आपके कथन को पूरा समर्थन देती हूँ , आ0 प्राची जी ने उन दोषों को इंगित किया है मुझे भी कुछ कमी लग रही थी किन्तु स्पष्ट नहीं हो प रहा था। आ0 प्राची जी आपका हार्दिक आभार । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2014 at 9:15pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी 

भक्ति भाव को प्रस्तुत करती सुन्दर भावनाएं अभिव्यक्त हुई हैं 

सोएगा भरमाएगा जैसे शब्दों की तुकांतता पर गौर कीजिये... ये कर्णप्रिय नहीं लगतीं ....

या तो सोएगा के साथ खोएगा रोएगा बोएगा जैसा शब्द होना चाहिए 

या भरमाएगा के साथ इतराएगा , ठोकर खाएगा , निभाएगा, बिसराएगा आदि शब्द होने चाहियें 

साथ ही द्विपदियों में भी यदि सम मात्रिकता रहती तो बेहतर होता....

आप अब शिल्पगत प्रयासों को भी सदिश कीजिये.. तो आनंद बहुगुणा हो जाएं 

शुभकामनाएं 

Comment by बृजेश नीरज on January 20, 2014 at 12:03am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, इस सुन्दर रचना पर आपको हार्दिक बधाई!

वैसे सुधीजनों ने आपकी इस रचना को अनुमोदित कर दिया है, लेकिन मुझे लगता है कि रचना कुछ और समय मांग रही है. हो सकता है कि यह मेरा भ्रम ही हो.

सादर!

Comment by annapurna bajpai on January 17, 2014 at 9:35pm

आ0 कुंती दीदी , सावित्री जी , आ0 सौरभ जी , आ0 भण्डारी जी , आ0 मीना दी , आ0 ब्रम्हचारी जी  आप सब का हार्दिक आभार । 

Comment by S. C. Brahmachari on January 17, 2014 at 8:33pm

मन को झकझोरती सुंदर रचना। बधाई हो बहन अन्नपूर्णा जी ......... याद आती है रचना --- मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे, काश  ये मन हरी सुमिरन मे ही लगा रहता ....... 

Comment by Meena Pathak on January 17, 2014 at 1:26pm
बहुत सुन्दर ... बधाई अप को

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2014 at 12:20pm

आदरणीय अन्ंपूर्णा जी , अंतरात्मा को जगाती आपकी रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 17, 2014 at 12:19am

पारंपरिक गीतों की शैली में यह रचना निर्गुनिया पढ़ती है.

बधाई अन्नपूर्णाजी.

Comment by Savitri Rathore on January 16, 2014 at 10:05pm

अतिसुन्दर रचना अन्नपूर्णा जी !

Comment by coontee mukerji on January 16, 2014 at 9:07pm

अंतरात्मा को जगाती बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.....अन्नपूर्णा जी आपको हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छी कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।  दुर्वयस्न को दुर्व्यसन…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मार्गशीर्ष (दोहा अष्टक)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर रोला छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मतभेद
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मार्गशीर्ष (दोहा अष्टक)

कहते गीता श्लोक में, स्वयं कृष्ण भगवान।मार्गशीर्ष हूँ मास मैं, सबसे उत्तम जान।1।ब्रह्मसरोवर तीर पर,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय दयारामजी"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मतभेद
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service