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ग़ज़ल - मुझे बेजान सा पुतला बनाना चाहता है

१२२२   १२२२     १२२२    १२२

मुझे बेजान सा पुतला बनाना चाहता है

किसी शोकेस में रखकर सजाना चाहता है

 

मेरे जज्बात सब उसको खिलौने जान पड़ते

जिन्हें वो खुद की चाभी से चलाना चाहता है

 

कुतर डाले मेरे जब हौंसलों के पंख उसने

बुलंदी आसमां की अब दिखाना चाहता है

 

मेरे किरदार में सख्ती नहीं उसको गंवारा

बिना हड्डी का कर मुझको पचाना चाहता है

 

दिवारें चार मेरी हो गईं हैं कब्रगाहें

मुझे जिन्दा ही वो मुर्दा बनाना चाहता है

.

संजू शब्दिता  मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ajay Agyat on January 11, 2014 at 7:12pm

उम्दा

Comment by Meena Pathak on January 11, 2014 at 5:06pm

गज़ल का हर एक शे'र लाजवाब 

Comment by coontee mukerji on January 11, 2014 at 4:24pm

 

मेरे किरदार में सख्ती नहीं उसको गंवारा

बिना हड्डी का कर मुझको पचाना चाहता है.....क्या बात है.

Comment by Shyam Narain Verma on January 11, 2014 at 3:51pm
बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई .......

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