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दिवस हो चले कोमल-कोमल (नवगीत)-कल्पना रामानी

सर्द हवा ने बिस्तर बाँधा,

दिवस हो चले कोमल-कोमल।

 

सूरज ने कुहरे को निगला।

ताप बढ़ा, कुछ पारा उछला।

हिमगिरि पिघले, सागर सँभले,

निरख नदी, बढ़ चली चंचला।

 

खुली धूप से खिलीं वादियाँ,

लगे झूमने निर्झर कल-कल।

नगमें सुना रही फुलवारी
गूँज उठी भोली किलकारी
खिलती कलियाँ देख-देखकर
भँवरों पर छा गई खुमारी।

 

देख तितलियाँ, उड़ती चिड़ियाँ,

मुस्कानों से महक रहे पल।

 

अमराई जो कल तक पल-छिन

काट रही थी बनकर जोगन,

मौसम के इस नए रूप से।

आतुर है बनने को दुल्हन।

 

मन-आँगन में नृत्य कर रहे,

मोर, पपीहे, कोयल, बुलबुल।    

मौलिक व अप्रकाशित

---कल्पना रामानी 

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Comment by कल्पना रामानी on January 15, 2014 at 3:01pm

आदरणीय सौरभ जी, अब क्या कहूँ! यहाँ का मौसम ही ऐसा है तो भाव भी वैसे ही जन्म लेंगे ना। फिर भी गीत पढ़ ल्या तो कुछ कोमलता का अहसास हुआ ही होगा।

सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on January 15, 2014 at 2:59pm

सादर धन्यवाद राम शिरोमणि जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2014 at 11:27pm

एक डेढ़ महीने पहले की रचना है ये आदरणीया. फिलहाल तो कुल्फ़ी ही जम रही है अपनी. :-)))

बधाई हो..

Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 9:47pm

 आदरणीया कल्पना रमानी जी,बहुत ही प्यारा नवगीत //। हार्दिक बधाई आपको 

Comment by कल्पना रामानी on January 13, 2014 at 6:14pm

सादर धन्यवाद आदरणीय आशुतोष जी

Comment by कल्पना रामानी on January 13, 2014 at 6:14pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अरुण अनंत जी  

Comment by कल्पना रामानी on January 13, 2014 at 6:12pm

 

प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अजय शर्मा जी

Comment by कल्पना रामानी on January 13, 2014 at 6:08pm

 

आदरणीय,योगराज जी , आपकी प्रशंसात्मक टिप्पणी से अभिभूत हूँ। हृदय से धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on January 13, 2014 at 6:05pm

रचना को आपका स्नेह और सम्मान मिला, हार्दिक प्रसन्नता हुई। सादर धन्यवाद आपका आदरणीय

अजय अज्ञात जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 13, 2014 at 1:13pm

खिलती कलियाँ देख-देखकर 
भँवरों पर छा गई खुमारी।

सूरज ने कुहरे को निगला।

ताप बढ़ा, कुछ पारा उछला।..बहतरीन नव गीत ..कल पढ़ा था लेकिन दिल को छो लेने वाले इस गीत के निमंत्रण पुनः आपके ब्लॉग तक ले आया ...पुनः बधाई के साथ 

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