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ग़ज़ल- पर सुगम होगा सफ़र, लगता है // --सौरभ

दिन उगे का तो पहर लगता है
यों अभी थोड़ी कसर, लगता है..

साँस लेना भी दूभर लगता है
क्या ये मौसम का असर लगता है

क्या हुआ साथ चलें या न चलें
पर सुगम होगा सफ़र, लगता है

घोर आपत्तियों के मौसम में  
मौन तक आज मुखर लगता है

जोश अंदाज़ रवां दौर लिये  
मकबरा शांत इधर लगता है  

लोग दीवार उठायेंगे ही    
छत बना यार अगर लगता है

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर
घर तभी प्यार का घर लगता है

बह रही शांत नदी के मन में  
एक उल्टी है लहर लगता है

सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं
अब निवेदन से भी डर लगता है
*************

-सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by गिरिराज भंडारी on January 6, 2014 at 8:06am

आदरणीय सौरभ भाई , लाजवाब गज़ल कही है आपने , सभी अशआर बहुत खूब हुये है । आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

क्या हुआ साथ चलें या न चलें
पर सुगम होगा सफ़र, लगता है

घोर आपत्तियों के मौसम में  
मौन तक आज मुखर लगता है

 

बह रही शांत नदी के मन में  
एक उल्टी है लहर लगता है

सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं
अब निवेदन से भी डर लगता है ---- आदरणीय ये शेर बहुत खास लगे , आपको ढेरों बधाइयाँ ॥

Comment by vandana on January 6, 2014 at 7:23am

आदरणीय सौरभ सर बहुत खूबसूरत ग़ज़ल 

घोर आपत्तियों के मौसम में  
मौन तक आज मुखर लगता है 

जोश अंदाज़ रवां दौर लिये  
मकबरा शांत इधर लगता है  

लोग दीवार उठायेंगे ही    
छत बना यार अगर लगता है 

बह रही शांत नदी के मन में  
एक उल्टी है लहर लगता है 

सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं 
अब निवेदन से भी डर लगता है 

मेरे लिए तो असर , मुखर ,इधर जैसे शब्द हमेशा मात्रा गणना में परेशानी पैदा करते थे अब एक अच्छा संकलन मिल गया बहुत-2 आभार 

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