दीवाने भी अज़ब हैं वो जो महफ़िल लूट लेते हैं ।
के सिर कदमों में रखते हैं और दिल लूट लेते हैं ।
कि जिन लहरों के तूफानों ने लूटी कश्तियाँ लाखों ,
उन्हीं लहरों के आवेगों को साहिल लूट लेते हैं ।
शाख से टूटकर अपनी बिखर जाते हैं जो तिनके ,
बनाने को घरौंदे उनको हारिल लूट लेते हैं ।
अदब तो दोस्ती का है पर अदायें दुश्मनों सी हैं ,
के हमारा चैन उनके नैन कातिल लूट लेते हैं ।
मोहब्बत करने वालों का ख़ुशी से वास्ता क्या है ,
यहाँ तो दर्द के कतरे भी संग दिल लूट लेते हैं ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम'
Comment
आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया रचना कि कमियों हेतु भी आगाह करने के लिए ।
आप जबतक खुद बह्र को ग़ज़ल के साथ नहीं लिखेंगे आपकी ग़ज़ल बेबह्र हो कर ख़ारिज़ होती रहेगी. आप ही बताइये कि मिसरों का वज़्न क्या है. विधा कोई हो उसे निभाना अधिक जरूरी है. वर्ना गद्य लीखिये.
शुभेच्छाएँ
भाई नीरज 'प्रेम' जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है. लगभग सभी अश'आर प्रभावित करते हैं. मेरी दिली बधाई स्वीकारे। निम्नलिखित शेअर में तकाबुल-ए-रदीफ़ैन नामक ऐब है, उसकी तरफ ध्यान अवश्य दें.
//अदब तो दोस्ती का है पर अदायें दुश्मनों सी हैं ,
के हमारा चैन उनके नैन कातिल लूट लेते हैं । ।//
मोहब्बत करने वालों का ख़ुशी से वास्ता क्या है ,
यहाँ तो दर्द के कतरे भी संग दिल लूट लेते हैं ।........................... उम्दा , बधाई ।
बहुत ही सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!
बहुत ही उम्दा लाईन ...
मोहब्बत करने वालों का ख़ुशी से वास्ता क्या है ,
यहाँ तो दर्द के कतरे भी संग दिल लूट लेते हैं ....
भाव-पूर्ण रचना ... बंधुवर बधाई स्वीकार करें ...
मोहब्बत करने वालों का ख़ुशी से वास्ता क्या है ,
यहाँ तो दर्द के कतरे भी संग दिल लूट लेते हैं ।.....बहुत सुंदर....हार्दिक बधाई आपको नीरज भाई.
वाह वाह वाह क्या बात शानदार रचना हेतु बधाई आपको,,,,,
आदरणीय नीरज भाई , बहुत खूबसूरत भाव पूर्ण रचना की है , आपको बधाइयाँ ॥ अगर आपने गज़ल कही है तो सभी शेर एक बहर में नही लग रहा है अन्यथा रचना बहुत अच्छी है ॥
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