प्रतिपल नव की कल्पना, पल-व्यतीत आधार
सामासिक दृढ़ भाव ले, आह्लादित संसार
सिद्धि प्रदायक वर्ष नव : धर्म-कर्म-शुभ-अर्थ
मंशा कुत्सित दानवी, लब्धसिद्धि हित व्यर्थ
शाश्वत मनस स्वभाव से नूतन नवल स्वरूप
खेल रही मृदु ओस में खिलखिल करती धूप
आओ मिलजुल तय करें, हमसब निज संसार
स्वीकारें उत्साह पल, जीयें मधुमय प्यार
आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ
इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप
फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप
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-सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
bhaavpoorn dohon kee antrman ko chhoote dohon kee apritam prastuti ke liye haardik badhaaee sveekaar krain aa.Sourabh jee
सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें ................................ |
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