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सोचती हूँ होती मेरी भी एक बिटिया
पढ़ती वो भी बिन कहे दिल की पतिया
भीगती जब असुअन से मेरी अखियाँ
पूछती माँ क्यूँ भीगी तेरी अखिंयाँ
बनाती बहाना चुभ गया कुछ बिटिया
कहती,समझती हूँ माँ तेरे दिल की बतियाँ !!
 

काश होती मेरी भी एक बिटिया
वो पढ़ लेती मेरे दिल की पतियाँ
होती मेरी हमसाया,हमराज,सखी
कहती ना कभी ऐसी बतियाँ
उड़ा देती जो मेरी रातों की निंदियाँ
माँ तुममे भी है कुछ कमियाँ !!

मीना पाठक 
मौलिक/अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 20, 2013 at 1:02pm

बिटिया की चाहना में सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई 

पर शिल्प की सुगढ़ता के लिए थोड़ा और समय मांगती है यह रचना 

सादर.

Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 7:01pm

हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी | सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 19, 2013 at 6:55pm

आदरणीया मीना जी , माँ - बेटी के रिश्ते को बहुत अच्छे से बयान किया है आपने ,  बहुत खूब ॥ आपको बहुत बधाई ॥

Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 1:22pm

"दोनों का अलग-अलग स्थान है".. सच कहा आप ने आ० अन्नपूर्णा जी इनमे से कोई एक ना हो तो परिवार अधूरा ही रहता है :)

सादर आभार आप का 

Comment by annapurna bajpai on December 19, 2013 at 12:58pm

सुंदर अहसास से परिपूर्ण , सच बेटी और बेटा दोनों ही अपना अलग अलग स्थान रखते है । बेटी बिन कहे माँ के दिल की बात समझ लेती है , बेटे बोलने पर । बहुत बधाई आपको मीना जी इस अनुपम रचना के लिए । 

Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 12:38pm

आदरणीय अविनाश जी सादर प्रणाम 

रचना सराहने हेतु सादर आभार !

Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 12:34pm

प्रिय जितेन्द्र रचना के भावों को समझने और सराहने के लिए बहुत बहुत आभार 

Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 12:33pm

वंदना जी बहुत बहुत आभार 

Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 12:32pm

सादर प्रणाम आदरणीय गोपाल नारायण जी , रचना को स्नेह और सराहने के लिए सादर आभार स्वीकारें 

Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 12:30pm

आदरणीय संजय मिश्रा जी सादर आभार स्वीकारें 

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