2122 2122 2122 2122
ज़ख़्म सूखे हैं तो फिर क्यों दर्द फैला जा रहा है
क्यों मुझे वो दिन पुराना याद आता जा रहा है
भीड़ मे रहना मुझे फिर बोझ सा लगने लगा क्यों
और तनहा कोई कोना क्यों बुलाता जा रहा है
फिर वही झरने की कल कल, फिर वही ठंडी हवायें
फिर कोई पागल परिन्दा गीत गाता जा रहा है
कोई सपना फिर पुराना आँखों मे पलने लगा क्यों
अजनबी सा डर है तारी दिल धड़कता जा रहा है
फिर से नामावर का रस्ता देखने का दिल किया क्यों
क्यों कबूतर ख़्वाब में फिर रोज़ आता जा रहा है
फिर से बच्चे आज पत्थर क्यों जमा करने लगे अब
फिर मुहल्ले में मुझे पागल बताया जा रहा है
फिर से दुनिया की नज़र फिरने लगी मै देखता हूँ
ज़ेह्ने दुनिया क्या कोई साजिश रचाता जा रहा है
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नामावर = पत्र वाहक
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय केवल भाई , !!!!! गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!!
आदरणीय सुर्या बाली जी ,!!!! गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!! ऐसे ही स्नेह बनाये रखें !!!!!
आदरणीय अरुण निगम भाई , !!!!! ग़ज़ल की सराहना और एक शे र को विशेष मान देने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ !!!!!!
आदरणीय भण्डारी भाई जी, बहुत खूब! लाजवाब अश'आर हुए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
गिरिराज जी बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई ...माँशाल्लाह हर एक शेर लाजवाब और ये शेर तो बेहद उम्दा हुआ है।
फिर वही झरने की कल कल, फिर वही ठंडी हवायें
फिर कोई पागल परिन्दा गीत गाता जा रहा है
दिली दाद कुबूल करें !
आदरणीय गिरिराज जी शानदार ग़ज़ल सुनाने के लिए आभार.
भीड़ मे रहना मुझे फिर बोझ सा लगने लगा क्यों
और तनहा कोई कोना क्यों बुलाता जा रहा है
इस अश'आर के लिए खासतौर से दाद स्वीकार करें...................
आदरणीय अजय भाई , !!!!! ग़ज़ल की सराहना कर , उत्साह वर्धन करने के लिये आपका बहुर आभारी हूँ !!!!!!
फिर से बच्चे आज पत्थर क्यों जमा करने लगे अब
फिर मुहल्ले में मुझे पागल बताया जा रहा है..........bahut hi sunder sher ......
आदरणीय सुशील भाई , हृदय से दी गई बधाई हृदय तक पहुंची !!!! आदरणीय, उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!
आदरणीय बड़े भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!!
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