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भई चंदा निकल रहा होगा

जहाँ पर्वत पिघल रहा होगा
चरागे इश्क जल रहा होगा

परिंदे लौटने लगे घर को
चढ़ा सूरज जो ढल रहा होगा

बना है आदमी क्यूँ घोड़ा ये
कोई बच्चा मचल रहा होगा

गलितयों से जो दोस्ती कर ले
वो अपने हाथ मल रहा होगा

नयन हैं तिश्नगी भरे उसके
कोई तो ख्वाब पल रहा होगा

भरे है दर्द वो मगर न कहे
उसे अपना ही छल रहा होगा

छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा

जले जो दीप आँधियों में भी
वो गर्दिशों को खल रहा होगा  

संदीप पटेल "दीप"

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 22, 2013 at 6:37pm

आदरणीय संदीप भार्इ जी!  सादर प्रणाम!  वाह! करवा चौथ के मौके पर बेहद सुन्दर गजंल। तहेदिल से दाद कुबूल करे।  भार्इ जी यह शेर पुन: देख लें----//गलितयों से जो दोस्ती कर ले 
वो अपने हाथ मल रहा होगा ।//---  सादर,

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on October 22, 2013 at 3:39pm

सुन्दर ग़जल हेतु बधाई। आपको कारवां चौथ की शुभकामनाएं आदरणीय संदीप जी। ;)

Comment by Abhinav Arun on October 22, 2013 at 2:30pm

छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा

अच्छी ग़ज़ल ...सुंदर शेर ..और ये वाला तो करवा चौथ पर सटीक ...हार्दिक बधाई आदरणीय !!

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