For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैसा ये जीवन हुआ, दिन प्रति बढ़े विकार

लोभ, मोह, मद, दंभ भी, नित लेते आकार  

नित लेते आकार, स्वार्थ के सर्प अनूठे

बाँट रहे संदेह, नेह के बंधन झूठे

मन में फैली रेह, भाव है ठूंठों जैसा

संवेदन अब शून्य, मूल्य संस्कृति का कैसा

                - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 763

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 29, 2013 at 10:40pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!

'ठूंठों' शब्द के प्रयोग पर मुझे भी संशय निवारण की प्रतीक्षा रहेगी. वैसे मेरा मंतव्य यहाँ ये था की हर भाव ठूंठ के जैसा है, इसीलिए 'ठूंठों' शब्द का प्रयोग किया.

सादर! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 29, 2013 at 7:34pm

आदरणीय बृजेश जी 

सुन्दर छन्द रचना हुई है..दोहा अंश तो बेहद सामिक यथार्थ शब्द चित्र प्रस्तुत करता है..

कैसा ये जीवन हुआ, दिन प्रति बढ़े विकार

लोभ, मोह, मद, दंभ भी, नित लेते आकार 

नित लेते आकार, स्वार्थ के सर्प अनूठे...........................स्वार्थ के सर्प .....वाह! सुन्दर 

बाँट रहे संदेह, नेह के बंधन झूठे

मन में फैली रेह, भाव है ठूंठों जैसा................................भाव के साथ ठूंठों फिर जैसा ....भाव और जैसा तो एक वचन हैं पर ठूंठों बहुवचन शब्द है.. शायद यह व्याकरणीय रूप से अशुद्ध हो.. सुधिजनों से इस संशय का निवारण अपेक्षित है.

संवेदन अब शून्य, मूल्य संस्कृति का कैसा

सादर शुभकामनाएं 

Comment by बृजेश नीरज on October 24, 2013 at 8:42pm

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार! सच कहूं तो इस ओर वास्तव में मेरा ध्यान ही नहीं गया! इस सुझाव हेतु आपका हार्दिक आभार!

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 7:46pm

बहुत ही सुंदर एवं सार्थक छंद है आ0 बृजेश जी..... बस मुझे लगता है कि दोहे के द्वितीय चरण में 'दिन प्रति' के क्रम की अदला बदली कर क्रमश: 'प्रति दिन' कर दिया जाए तो और अधिक लयबद्ध हो जाएगा.... वैसे यह मेरा निजी विचार है.....

कैसा ये जीवन हुआ, प्रति दिन बढ़े विकार।

लोभ, मोह, मद, दंभ भी, नित लेते आकार।। ........

Comment by बृजेश नीरज on October 23, 2013 at 9:46pm

आदरणीया कुंती जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 23, 2013 at 9:45pm

आदरणीय राम भाई आपको दो बार बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by ram shiromani pathak on October 23, 2013 at 8:40pm

वाह वाह बहुत ही सुन्दर कुण्डलियाँ छंद आदरणीय भाई ब्रिजेश जी //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by ram shiromani pathak on October 23, 2013 at 4:47pm

आदरणीय बृजेश भाई,बहुत सुन्दर कुंडलिया //बहुत बधाई आपको 

Comment by coontee mukerji on October 23, 2013 at 2:22pm

मन में फैली रेह, भाव है ठूंठों जैसा

संवेदन अब शून्य, मूल्य संस्कृति का कैसा.....बहुत सुंदर एवम सटीक.बृजेश जी.शुभकामनाएँ सहित

कुंती.

Comment by बृजेश नीरज on October 22, 2013 at 7:15am

आदरणीय अनुराग जी आपका हार्दिक आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
13 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
13 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
13 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
13 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
13 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
14 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service