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तान्या : वो लम्हा चित्रलिखित सा

हर इंसान के जीवन में
एक लम्हा
ऐसा आता है /
वक़्त नहीं थमता,
वह लम्हा
रह जाता है खड़ा हुआ
ज्यों चित्रलिखित सा ।

और कभी
जब चलते चलते
थक जाता है वक़्त
तो
इस लम्हे की छाया में
कुछ देर बैठ कर सुस्ताता है|

और कभी
जब बदली छा जाती है ,
और मन का पंछी
घबरा जाता है
तो यह लम्हा
इन्द्रधनुष सा
आसमान में बिखर जाता है /
और ये मौसम पहले जैसा खुशगवार
फिर हो जाता है ।

मै तो ऐसा दीवाना हूँ ,
मैंने हर लम्हे को
उस लम्हे के साथ जिया है /
कभी उसे घिस कर
चन्दन सा तिलक लगाया /
और कभी
उसको कविता का शब्द बनाया /
और कभी
वह लम्हा मेरे साथ चला है
छाया बन कर /
और कभी
वह लम्हा मुझको छलता है
माया बन कर ।

उस लम्हे की खातिर
मै अपने से लड़ा हूँ /
और साथ उस ही लम्हे के
आज वक़्त के शिलाखंड पर
एक ज़र्रे सा पड़ा हुआ हूँ ।

मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर 'शेखर'

Views: 716

Comment

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Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 1:15pm

वाह! लम्हों का क्या सुंदर दास्तान है.

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 18, 2013 at 9:03am

आदरणीय सौरभ जी आपकी टिप्पणी मेरे लिए मूल्यवान होती है । बहुत बहुत आभार ....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 11:59pm

कुछ विन्दुओं के प्रति भावनाएँ विगत के प्रति संवेदनशील बनाये रखती है. अच्छी रचना के लिए बधाई.

Comment by बृजेश नीरज on October 17, 2013 at 6:19pm

बहुत सुन्दर कविता! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 17, 2013 at 7:25am

आदरणीय अभिनव अरुण  जी ,आदरणीय  गीतिका जी  आपकी    टिप्पणी मेरे लिए  बहुत मायने रखती है ।  उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद । 

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 17, 2013 at 7:21am

आदरणीय शकूर जी ,  आदरणीय सुशिल जोशी जी आपको रचना पसंद आई बहुत आभार । 

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 17, 2013 at 7:19am

आदरणीय अरुण कुमार निगम जी  आपकी  उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिए धन्यवाद । 

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 17, 2013 at 7:18am

आदरणीय गिरिराज जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका शुक्रिया !!!!!!

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 17, 2013 at 7:12am

आदरणीय अरुण जी ,  आपको रचना पसंद आई बहुत आभार । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 16, 2013 at 11:12pm

आदरणीय अरविंद जी,

मैंने हर लम्हे को
उस लम्हे के साथ जिया है /
कभी उसे घिस कर
चन्दन सा तिलक लगाया /
और कभी
उसको कविता का शब्द बनाया /

जीवन का मर्म इसी लम्हे में छिपा है, अति सुंदर अभिव्यक्ति............

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