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लघुकथा : गिफ्ट (गणेश जी बागी)

साफ साफ बताओं, आख़िर बात क्या है ? जबसे तुम अपनी छोटी बहन की शादी से लौटी हो, तुम्हारा मूड उखड़ा उखड़ा है और ढंग से बात भी नही कर रही हो, प्रकाश नें अपनी पत्नी नीतू से पूछा | 
"कुछ नही बस यूँ ही" 
"देखो 'बस यूँ ही' कहने से काम नही चलने वाला, तुम्हे मेरी कसम, सच सच बताओं हुआ क्या ?"

"प्रकाश आपने मेरी बहन की शादी मे जो अँगूठी गिफ्ट की थी न, वह किसी को पसंद नही आयी, भाभी और माँ ने आपका खूब मज़ाक उड़ाया, वो लोग कह रही थीं कि यह घटिया अँगूठी कहाँ से खरीदी है, एक तो बेहद हल्की है और डिजाइन भी देहाती टाइप, चेहरा लटकाए नीतू एक साथ बोल गयी | 

"हूउउउ तो यह बात है, अरे भाई तुम्हे तो पता ही है आजकल पैसे की दिक्कत चल रही है इसलिए अँगूठी खरीदी कहाँ, शादी में तुम्हारी माँ ने जो अँगूठी मुझे दी थी वो नई ही पड़ी थी उसी को साफ करवा कर गिफ्ट कर दिया था |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 11:47am

जैसे को तैसा मिला,अनजाने में ही सही। सुंदर लघु कथा की बधाई गणेश भाई।  

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on October 14, 2013 at 11:08am

यह भी खूब रही... :)))

जाने किसकी बोलियाँ, हृदय रही थीं चीर।

जबकि अभी जा कर लगा, सही निशाने तीर॥

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 14, 2013 at 10:52am

बहुत अच्छी 'गिफ्ट' रही.... पत्नी नीतू जी लाजवाब हो गयीं .... शानदार लघुकथा !!!

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