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हादिसों से जिन्दगी ऐसे गुजरती जा रही हैं (ग़ज़ल --राज )

2122     2122    2122   2122  

बह्र----रमल मुसम्मन सालिम 

.

हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं

शबनमी बूंदे जों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं  

 

लूट कर अम्नो चमन को चल पड़े हो तुम जहाँ  से

बद दुआओं की वहां किरचें बिखरती जा रही हैं

 

अब्र तुझको क्या मिलेगा यूँ समंदर पे बरस के

देख नदियाँ आज सहरा में सिमटती जा रही हैं

 

हाथ दिल पर रख लिया फिर सीलती उस झोंपड़ी ने

रश्मियाँ ऊँची हवेली में उतरती जा रही हैं 

 

बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब

देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं

 

जो जमीं शादाव रहती थी यहाँ पर कहकहों से

नफ़रतों की ये रिदाएँ क्यों पसरती जा रही हैं

 

या ख़ुदा पर्दों के पीछे छुप गईं तहज़ीब अब तो

जुल्म गर्दों की यहाँ सूरत निखरती जा रही हैं

 

पर गुलामी कैद से जिसको शहीदों ने बचाया   

उस कमल की 'राज' पंखुड़ियाँ उखड़ती जा रही हैं

********************************** 

 

ख़ार =कांटे

शादाव=हरीभरी

किरचें =छोटे छोटे कण

रश्मियाँ =सूर्य की किरणें

रिदाएँ =चादरें

सहरा =रेगिस्तान  

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2013 at 2:50pm

आदरणीय सौरभ जी सच में ये टिपण्णी तो मेरे सर से ही उतर गई कुछ लगता है स्टार मेरे फेवर में नहीं चल रहे आज कल 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 7, 2013 at 2:40pm

// किन्तु अभी आदरणीय वीनस जी की भी इन्तजार है ,//

तब बहुत गलत किया अन्य पाठकों ने जिसका एहसास शायद खुद पाठकों को नहीं हो रहा.. .

आदरणीय योगराज भाईसाहब इस मामले में बहुत संयत हैं.

सादर नमन आदरणीय योगराजभाईजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2013 at 1:09pm

आदरणीय एडमिन जी आपका हृदय तल से बहुत बहुत आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2013 at 1:08pm

आदरणीय सौरभ जी ग़ज़ल पर आपकी पुनः उपस्थिति और बहुमूल्य सुझाव का हृदय से सम्मान करते हुए ग़ज़ल के मतले मैं संशोधन कर लिया है ,शायद अब ये ग़ज़ल दोष मुक्त है ,किन्तु अभी आदरणीय वीनस जी की भी इन्तजार है ,पुनः आपका हार्दिक आभार आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2013 at 1:05pm

प्रिय प्राची जी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और दाद दोनो के लिए हृदय से शुक्रगुजार हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ ,हाँ मतले में संशय है जो आदरणीय सौरभ जी ने इंगित किया है और अब बेहतरीन सुझाव भी दिया है उसी के आधार पर अभी दुरुस्त किया है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2013 at 1:02pm

आदरणीय नादिर खान जी आपने ग़ज़ल को सराहा पसंद किया मेरा लेखन कृतार्थ हुआ हृदय तल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2013 at 1:01pm

प्रिय संदीप कुमार पाटिल जी आप जैसे रचनाकार से दाद पाना ,अलग ही एहसास देता है बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2013 at 12:59pm

अरुन शर्मा अनंत जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपकी दाद सुनकर मेरा दिल भी प्रसन्न हो गया हार्दिक आभार आपका 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 7, 2013 at 12:47pm

यथा संशोधित


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2013 at 12:45pm

आदरणीय एडमिन जी आपसे अनुरोध है कि  ग़ज़ल के मतले की पहली पंक्ति इस तरह संशोधित कर दीजिये --सादर 

हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं 

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