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आदरणीय आशुतोष जी .. स्वागत है ... हार्दिक धन्यवाद आदरणीय .. रचना के मर्म को समझा , पसंद किया ह्रदय तल से आभार .. सहयोग बनाये रखे सादर
देवता बनने का स्वाँग
बंद करो
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं...................... बहुत सुन्दर रचना ... बधाई आप को
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं
.... समय की अपेक्षाओं पर खरी ..खरी खरी कहने वाली इस रचना के लिए हार्दिक शुभाशीष महिमा जी ..आज वक़्त की मांग है ये साफगोई ज़रूरी है वरना बहेलिये जाल बिछाए ..दाने डाल ...ऑफिस ऑफिस ..पार्क पार्क ..तत्र सर्वत्र ...बैठे हैं ..आपने जाना बूझा परखा और लिखा स्तुत्य है रचना ...बहुत शुभकामनायें !!
देवता बनने का स्वाँग
बंद करो
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं
नयी सोच को दर्शाती रचना,सराहनीय प्रयास !
बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
एक नयी सोच और नयी दिशा की और बढ़ते ये कदम ! शुभकामनाये आपको
गजब-
ठीक पहचाना-
सही प्रतिक्रिया-
शुभकामनायें आदरेया-
आदरणीया महिमा श्री जी वाह क्या कहने बहुत ही सुन्दर रचना दिल को छू गई बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
रचना में सुन्दर भाव दर्शाने के लिए हार्दिक बधाई महिमाश्री जी -
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं | अर्थात
मेरी प्रगति के दरवाजे
अब तुम
न बंद करों |
जय हो, अच्छी प्रस्तुति । मगर प्रशंसा की बात को देवता से जोड़ नहीं पाया । वागविलास भी देवता नहीं करते, खैर, चलते रहें ।
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