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ग़ज़ल -- ज़िन्दगी है बेरहम बस दौड़ती रफ्तार में

2122    2122    2122    212

अब तो बाहर आ ही जायें ख़्वाब से बेदार में

क़त्ल ,गारत, ख़ूँ भरा है आज के अख़बार में

कोई दागी है, तो कोई है ज़मानत पर रिहा 

देख लें अब ये नगीने हैं सभी सरकार में

 

कोई पूछे , सच बताये, धुन्ध क्यों फैला है ये

उनको छोड़ें जो गवैये हैं किसी दरबार में

 

पेट की खातिर किसी का तन बिका करता है अब

और कोई घर की बेटी नाचती है बार में

 

थक के पीछे रह गया हूँ , हाँफता मैं क्या करूँ

ज़िन्दगी है बेरहम बस दौड़ती रफ्तार में

 

आप कीलें ध्यान से बाहर ज़रा सा ठोकना

प्लासटर तड़का दिखा है भीतरी दीवार में

मन की कड़वाहट मेरे शब्दों को सारे खा रही

बात सच्ची कह रहा हूँ पर कमी है धार में 

.

संषोधित पोस्ट ( गलती सुधार के बाद )

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 4:25pm

अदरणीया परवीन मलिक जी  , गज़ल की सराहना के लिये , उत्साह वर्धन के लिये तहे दिल से शुक्रिया !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 2:59pm
आदरणीय बड़े भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हारदिक आभार!!!
Comment by Parveen Malik on September 20, 2013 at 2:43pm
कोई दागी है, तो कोई है ज़मानत पर रिहा
देख लें अब ये नगीने हैं सभी सरकार में....
आदरणीय बिल्कुल सत्य कथन ....
सुन्दर गजल के लिए हार्दिक बधाई !!
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 20, 2013 at 1:06pm

 व्यवस्था पर चोट करती एक अच्छी गज़ल । बधाई छोटे भाई । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 7:35am

आदरनीया महिमा श्री जी , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 7:35am

आदरणीया वन्दना जी , ग़ज़ल कीए सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 7:26am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 7:25am

आदरणीय अरुन भाई , आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करती है , आपका बहुत शुक्रिया !!

Comment by vandana on September 20, 2013 at 6:39am
आप कीलें ध्यान से बाहर ज़रा सा ठोकना
पलसतर तड़का दिखा है भीतरी दीवार में

वाह सर बहुत बढ़िया !!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 19, 2013 at 10:50pm

 थक के पीछे रह गया हूँ , हाँफता मैं क्या करूँ

ज़िन्दगी है बेरहम बस दौड़ती रफ्तार में........वाह! यह शेर बहुत पसंद आया

बेहद सुंदर गजल, हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी

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