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वज़न -२२१२ २२१२ 

ठगते रहे सब प्यार में!
बिकता रहा बाज़ार में !!

लेने चला मै रौशनी!
पागल सा अन्धे गार में !! 

खुद ही बताता है जखम !
थी धार क्या औज़ार में !!

कैसे नहीं गिरती भला !
थी रेत ही दीवार में !!

कैसे करूँ तारीफ़ मै!
दम ही कहाँ अशआर में !!
****************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक/अप्रकाशित  

Views: 939

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on September 17, 2013 at 11:35am

सुझाव के लिए  बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी//स्नेह यूँ  ही बनाये रखें ///सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 17, 2013 at 11:21am

ये हुई न बात.  बहुत सही.

जखम होगा या ज़ख्म, ये देख लेना भाई. 

Comment by ram shiromani pathak on September 17, 2013 at 11:16am

बहुत बहुत आभार आदरणीय राज जी///सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 17, 2013 at 11:15am

बहुत बहुत आभार आदरणीय आशुतोष   जी/////सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 17, 2013 at 11:14am

बहुत बहुत आभार आदरणीय अभिनव अरुण  जी//आपके इस अमूल्य सुझाव के लिए पुनः बहुत बहुत आभार //स्नेह यूँ ही  बनाये रखें ////सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 17, 2013 at 11:12am

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई जीतेन्द्र  जी////सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 17, 2013 at 11:12am

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई वीनस जी//आपके प्रोत्साहन से बल मिलाता है //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 17, 2013 at 11:10am

बहुत आभार आदरणीया सावित्री जी //सादर 

Comment by राज़ नवादवी on September 17, 2013 at 10:57am

कैसे नहीं गिरती भला !
थी रेत ही दीवार में !!

कैसे करूँ तारीफ़ मै!
दम ही कहाँ अशआर में !!

अच्छे अशआर कहे हैं. 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 17, 2013 at 8:18am

सुंदर प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें 

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