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शायर की शायरी के लिए जान हैं आँखें.....

आशिक के दिल की ख्वाहिशो अरमान हैं आँखें । 

कुछ दिन से ये लगता है, परेशान हैं आँखें ॥ 

एक दिन तुझे देखा था, किसी राहगुज़र पे । 
उस दिन से उसी राह पे, मेहमान हैं आँखें ॥ 
 
होती हैं मेहरबाँ, तो ये उठकर के हैं गिरतीं । 
हो जाएँ बेमेहर, तो तूफ़ान हैं आँखें ॥ 
 
महबूब की कुर्बत में चमकती हैं ये अक्सर ।     
मौसम हो जुदाई का, तो बेजान हैं आँखें ॥ 
 
आँखों में जो डूबे हैं, वही लिखते हैं ग़ज़लें । 
शायर की शायरी के लिए जान हैं आँखें ॥ 
 
लफ़्ज़ों का एक तूफ़ान, उठा है मेरे दिल में । 
लगता है वीर, फिर से मेहरबान हैं आँखें ॥ 
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 11, 2013 at 11:21am

अच्छी गजल, बधाई अनिल भाई। कठिन शब्दों का अर्थ नीचे जरूर दें।

Comment by वीनस केसरी on September 11, 2013 at 1:28am

वीर साहब ग़ज़ल के साथ अरकान अथवा मात्रा लिख दें तो समझने में आसानी हो जाए और लुत्फ़ कई गुना बढ़ जाए ...

शुभकामनाएं

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