For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक बार फिर 

इकट्ठा हो रही वही ताकतें 

एक बार फिर 

सज रहे वैसे ही मंच 

एक बार फिर 

जुट रही भीड़

कुछ पा जाने की आस में

              भूखे-नंगों की 

एक बार फिर 

सुनाई दे रहीं,

वही ध्वंसात्मक  धुनें 

एक बार फिर 

गूँज रही फ़ौजी जूतों की थाप  

 

एक बार फिर 

थिरक रहे दंगाइयों, आतंकियों के पाँव 

एक बार फिर 

उठ रही लपटें

धुए से काला हो गया आकाश 

एक बार  फिर

गुम हुए जा रहे

शब्दकोष से अच्छे प्यारे शब्द 

एक बार फिर 

कवि निराश है, उदास है, हताश है...

(मौलिक अप्रकाशित) 

Views: 499

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 13, 2013 at 9:33am

बहुत ही सार्थक सन्देश देती रचना के लिए बधाई  श्री अब्वर भाई 

एक बार फिर 

आ गए आम चुनाव 

पांच साल के अंतराल से 

नेता आयेंगे घर घर 

घूमेंगे गली गली 

एक बार फिर 

बाटेंगे नोट  बंटेगी शराब 

ढाणी ढाणी गाँव गाँव 

Comment by बृजेश नीरज on September 12, 2013 at 11:24pm

वाह! बहुत खूब!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2013 at 5:40pm

आदरणीय आपकी संवेदना पर क्या कहूँ !  ग़ज़ब !!

आपकी रचनाओं का कनवास ज़मीन पर फैला होता है और हम रचना को उस कैनवास पर मानों चल कर महसूसते हैं.

साहित्य का जो वास्तविक धर्म होता है उसे निभा ले जाने वाला रचनाकार आम आदमी के हृदय को छूता है.

वैसे इस बार थोड़ा और संयत होना था. शब्द विन्यास पर बात कर रहा हूँ.

भाव और संवेदना से पगी हुई आपकी इस उत्कृष्ट रचना को थोड़ा और कस रहा हूँ. विश्वास है आपका अनुमोदन मिलेगा -

एक बार फिर 

इकट्ठा हो रही हैं वही ताकतें 

एक बार फिर 

सज रहे हैं मंच 

एक बार फिर

जुट रही है भीड भूखे-नंगों की 

एक बार फिर 

सुनाई दे रहीं हैं ध्वंसात्मक धुनें 

एक बार फिर 

गूँज रही हैं फ़ौजी जूतों की थाप  

 

एक बार फिर

धमक रहे हैं दंगाइयों, आतंकियों के पाँव 

एक बार फिर 

उठने लगी हैं लपटें

धुँए से काला हो गया है आकाश.. एकबार फिर.

एक बार फिर गुम हुए जा रहे हैं

मनसकोश से अच्छे-प्यारे शब्द 

एक बार फिर 

कवि निराश है, उदास है, हताश है...

सादर

Comment by विजय मिश्र on September 12, 2013 at 5:14pm
अनवर भाई ! आजकी इन अनापेक्षित दुखदायी परिस्थितियों का कितना सजीव और भाव बिह्वल वर्णन किया है आपने , सही में अंतस चेतना को बेधनेवाली गलीज स्थितियां बेशर्म की तरह हम गैरतमन्दों के आगे खड़ी है .इस गीत में आपके मन की वेदना स्पष्ट उभरी है और मनोदशा को उजागर करती है . शुक्रिया .
Comment by MAHIMA SHREE on September 11, 2013 at 9:27pm

मर्मस्पर्शी .. संवेदनशील मनुष्य की विवशता मुखर हुयी है ...

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 11, 2013 at 9:10pm

वाह बेहद गहन भाव पिरोये शानदार रचना आदरणीय बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 11, 2013 at 7:49pm

बाहरी बुरी ताकतों का, सामाजिक हालातों का  प्रभाव जिस तरह कवि के संवेदनशील हृदय पर होता है ..इसे संदरता से व्यक्त किया है 

सादर शुभकामनाएँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 7:11pm

आ0 अनवर भाई , हमेशा की तरह एक दमदार रचना !! बहुत बधाई !!

Comment by रविकर on September 11, 2013 at 11:12am

बहुत बढ़िया -
शुभकामनायें
आदरणीय-

नहा खून से हर हर गंगे |
बहा खून ले, दर दर दंगे |
भंग व्यवस्था लंगु प्रशासन
सड़कों पर दुर्दांत लफंगे ।

जब मारक आघात करें | बोलो किसकी बात करें ॥

जहाँ प्रवंचक प्रवचन करते ।
श्रोता मकु तरते ना तरते ।
लम्बी चौड़ी हांक हांक के
दारुण दुःख हरते ना हरते -

हरते सिया बलात धरें । बोलो किसकी बात करें ॥

Comment by annapurna bajpai on September 10, 2013 at 10:33pm
आ0 अनवर सुहेल जी बढ़िया रचना हेतु बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
1 hour ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।  आदरणीय सुशील…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी.…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service