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पूर्वाग्रह तो छोडिये मिलिए स्व बिसराय

मुख धरे डली नून की मीठो स्वाद न पाय

अनुशासित होकर रहे पतंग उड़े अकास

भागी फिरे कुरंग सम डोर पिया के पास

सिकुड़े गलियारे सहन ऊँची मन दहलीज

गलती माली की रही  कैसे बोये बीज

कब तक परछाई चले पूछ न कितनी दूर

धूप चढ़े सिर बावरी छाया थक कर चूर 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by ram shiromani pathak on September 7, 2013 at 1:13pm

बहुत सुन्दर दोहे रचे है अपने आदरणीया  वंदना जी//हार्दिक बधाई आपको ,भाई अरुण शर्मा जी से सहमत हूँ //सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 7, 2013 at 10:47am

आदरणीया वंदना जी दोहों पर आपका प्रयास बहुत ही प्रभावशाली है भाव बहुत ही गहन हैं दोहों के, मुझे कहीं कहीं प्रवाह बाधित लगा और कुरंग सम भागी फिरे डोर पिया के पास इस दोहे में जगण दोष है आदरणीया कृपया सुधार लें. प्रयास हेतु ढेरों बधाई स्वीकारें.

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