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उदित हुए रवि प्रेम के ,समय बड़ा अनुकूल !
ह्रदय प्रफुल्लित हो गया ,फूले मन के फूल !!1

प्रेम सुनाता है सुनों ,गाकर सुन्दर गीत !
यह जीवन दिन चार का ,सीखो करना प्रीति !!2

लिए पोटली प्रेम की ,सबसे हँसकर बोल !
प्रेम भरे दो बोल ही ,देते अमृत घोल !!3

मन में खिलते फूल है ,महकी महकी रात !
तन मन पुलकित हो गया, की है ऐसी बात !!4

बजी बाँसुरी प्रेम की ,सुन्दर कितनी तान !
मेरे मन को मोहती ,उनकी मृदु मुस्कान !!5

ढाई आखर प्रेम का ,इसका सहज प्रसार !
इसका हुआ निवेश यदि ,प्रतिदिन बढ़ता प्यार !!6
************************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by बसंत नेमा on September 6, 2013 at 10:05am

आ0 राम शिरिमणी जी बहुत ही सुन्दर मन मे मीठा रस घोलते दोहे .... बधाई शुभकामनाये 

Comment by Meena Pathak on September 5, 2013 at 11:50pm

बहुत सुन्दर दोहे, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आ० राम शिरोमणि जी

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 11:13pm

बहुत ही सुन्दर! बहुत दिनों बाद इतनी सशक्त अभिव्यक्ति देखने को मिली आपसे!
आपको बहुत बहुत बधाई!
सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 11:07pm

लिए पोटली प्रेम की ,सबसे हँसकर बोल !
प्रेम भरे दो बोल ही ,देते अमृत घोल !!..........सच! अगर आपके संवादों में प्रेम का रस घुला हो, तो बात बन ही जाती है

सुंदर दोहावली , बहुत बहुत बधाई राम भाई

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