For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बात जग को भला क्यूँ खल रही है

२१२२   १२२     २१२२ 

इक नजर इक नजर से मिल रही है

बात जग को भला क्यूँ खल रही है

वो हसी  चाल कोई चल रही है

रोज हल्दी वदन पे मल रही है

सर्द मौसम तन्हाई का अलम है

चांदनी शब् भी हमें अब खल रही है

इस तरफ हैं तडपती बाहें मेरी

उस तरफ उम्र उनकी ढल रही है

हो रहा बस अलावों का जिकर् ही

आग कब से दिलों में जल रही है

बाहुपाशो में बंधे हैं वदन दो

अब घड़ी मौत की भी टल रही है

हुश्न ने जिस घड़ी सीखा मचलना

तब से उल्फत दिलों में पल रही है

प्रेम की ही तपिश का ये असर है

पर्वतों सी जमी हिम गल रही है

सब समझ बैठे उल्फत बासना है

सोच ये आशु अब भी चल रही है  

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 624

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 15, 2014 at 11:00pm

इक नजर इक नजर से मिल रही है

बात जग को भला क्यूँ खल रही है

क्या बात है बहुत खूब. बधाई आपको ....

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 26, 2013 at 4:18pm

बेहद सुन्दर प्रयास है आदरणीय आपका निरंतर प्रयास निखर रहा है यह जान कर प्रसन्नता हो रही है. आदरणीय कृपया ग़ज़ल की बातें या ग़ज़ल की कक्षा जरुर ज्वाइन करें आपको काफी लाभ होगा.

सर्द मौसम तन्हाई का अलम है

चांदनी शब् भी हमें अब खल रही है .. आदरणीय इस शेर में तकाबुले रदीफ़ का दोष है और क्या आलम को अलम लिख सकते हैं? कृपया अन्यथा न लें मैं अल्प ज्ञानी हूँ सिर्फ ज्ञान बढ़ाने हेतु पूंछ रहा हूँ. ध्रिष्ठता हेतु प्रायः क्षमा प्रार्थी हूँ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 26, 2013 at 2:31pm

आदेर्नीया मंजरी जी, वंदना जी , आदरनीय विशाल जी , केवल जी , अरविन्द जी आपका प्रोत्साहन ही मुझे निरंतर हौसला प्रदान करता है ..तहे दिल आप सभी का धन्यवाद 

Comment by vandana on August 26, 2013 at 7:34am

इक नजर इक नजर से मिल रही है

बात जग को भला क्यूँ खल रही है

बढ़िया गज़ल 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on August 25, 2013 at 9:14pm

वो हसी  चाल कोई चल रही है

रोज हल्दी वदन पे मल रही है


इस तरफ हैं तडपती बाहें मेरी

उस तरफ उम्र उनकी ढल रही है

वाह - वाह......कुछ कमाल के अशआर से सजी.....तारीफ के काबिल गजल हुई है.......दिल से बधाई भाई !!!!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 8:36pm

आ0 आशुतोष भाई  जी,  सादर प्रणाम!     बेहतरीन गजल प्रस्तुति के लिए तहेदिल से दाद कुबूल करें। सादर,

Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 25, 2013 at 2:31pm

वो हसी  चाल कोई चल रही है

रोज हल्दी वदन पे मल रही है

क्या बात है, .............बधाई आशुतोष जी

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 2:19pm

     

वो हसी  चाल कोई चल रही है

रोज हल्दी वदन पे मल रही है            आदरणीय आशुतोष जी बधाई . सलीके से बात रख दी आपने .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2013 at 1:22pm

आदरणीया विनीता जी एवं ब्रिजेश जी ...उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 9:11am

वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको बहुत बहुत बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service