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गज़ल --" क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है "

2122    2122   2122    2122

******************************************

क्या हवायें आज कुछ पैग़ाम ले के आ रही है

धूप भी कुछ गा रही है, छाँव भी इतरा रही है

 

बेख़याली मे कहीं हम हद के बाहर तो नहीं है

आदमीयत आज बैठी क्यूँ यहां शर्मा रही है

 

इस जगह पर तो ख़िज़ां ने भी बहारें ओढ़ ली है

इसलिये ही ज़िन्दगी हर बार धोखा खा रही है

 

गुफ़्तगू  कुछ तो मोहब्बत और नफ़रत मे चली है 

वो भी कुछ समझा रही है ये भी कुछ समझा रही है

 

दोस्त मेरे भूख ज्यादा आज ही क्यों लग रही है

जब मुझे कुछ और ज़्यादा जेब भी तरसा रही है

 

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है  

 

बातिलों में वज़्न कितना ?झूठ की औकात कितनी ?

क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है

                 ***************

मौलिक एवँ अप्रकाशित्

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 12:52pm

बृजेश भाई , आपका बहुत बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 12:51pm

शुक्रिया भाई अरुन , सराहना के लिये !!गज़ल मे  तकाबुले रदीफ़ का दोष है, वीनस भाई जी ने मुझे बताया है पर मै अनजान था !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 24, 2013 at 12:43pm

वाह आदरणीय बेहद सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने मजा आ गया क्या ग़ज़ल में तकाबुले रदीफ़ का दोष नहीं है कृपया अवगत करायें? इस सुन्दर प्रस्तुति पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें

Comment by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 12:22pm

बहुत ही सुंदर भाव! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 11:02am
शुक्रिया शिज्जू भाई , वैसे वीनस भाई जी को मैसेज़ किया था तो उन्होने बहर को सही बताया था , और दो शेरों मे रदीफ दोष आने की बात समझाई थी !


दोस्त मेरे भूख ज्यादा आज ही क्यों लग रही है
जब मुझे कुछ और ज़्यादा जेब भी तरसा रही है -- यही गलती एक और शेर मे है !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 24, 2013 at 8:11am

आदरणीय गिरिराज सर आप ///अन्धेरों/// को ///अँधेरों/// कर दें तो सही हो जायेगा, अर्द्धाक्षरों के योग से दीर्घ हुई मात्रा को गिराया नही जा सकता,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 6:05am

आदरणीय ,सुरेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत आभर !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2013 at 11:05pm

बेख़याली मे कहीं हम हद के बाहर तो नहीं है

आदमीयत आज बैठी क्यूँ यहां शर्मा रही है

प्रिय गिरिराज जी ..काश ये सीख किसी के दिल को छू ले तो आनंद और आये ...सटीक और खूबसूरत भाव
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2013 at 9:56pm

आदित्य भाई , आपको रचना पसन्द आई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

Comment by Aditya Kumar on August 23, 2013 at 8:22pm

बहुत ही सुन्दर रचना ! हार्दिक बधाई और आदर !

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