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ग़ज़ल : न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

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न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से

 

ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था

मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से

 

ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा

ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से

 

ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती

जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से

 

चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’

जमाने तंग आया मैं तेरी आशिक मिजाजी से

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(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 17, 2013 at 2:14pm

बहुत बहुत धन्यवाद बसंत नेमा जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 17, 2013 at 2:12pm

बहुत बहुत धन्यवाद Sulabh Agnihotri जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 17, 2013 at 2:12pm

बहुत बहुत शुक्रिया aman kumar जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 17, 2013 at 2:11pm

बहुत बहुत धन्यवाद Ketan Parmar जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 17, 2013 at 2:10pm

बहुत बहुत शुक्रिया  विवेक मिश्र जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 17, 2013 at 2:09pm

बहुत बहुत धन्यवाद, giriraj bhandari जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 17, 2013 at 2:08pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ AVINASH S BAGDE जी। 

Comment by Sarita Bhatia on August 17, 2013 at 9:35am

बहुत बढ़िया आदरणीय बधाई स्वीकार करें 

Comment by MAHIMA SHREE on August 15, 2013 at 12:27pm

न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से....

 

ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती

जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से.....बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय ..बधाई स्वीकार  करें

 

 

 

Comment by वीनस केसरी on August 15, 2013 at 3:19am

बहुत खूब भाई अच्छे अशआर हुए ...

मतला में अच्छा कंट्रास्ट आया है

कृपया ध्यान दे...

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