For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्दे सितम जो डोरे दिल कमज़ोर कर गए ।
माला से दिल की टूट कर मोती बिखर गए ।

ता उम्र हमने रखा जिनको सहेज़ कर ,
हाथो से मेरे छूट कर जाने किधर गए ।

अरमा अधूरे रह गये दिल में जो प्यार के ,
बनकर के अश्क वो मेरी आँखों में भर गए ।

आये थे दिल की दास्ताँ सुन ने वो शौक से ,
गहराइयों में दिल की झाँका तो डर गए ।

दो पग भी उनके बिन चलूँ मुमकिन न हो सका ,
हमतो खड़े ही रह गए रस्ते गुज़र गए ।

ज़िंदा हमे समझ रहे उनको खबर नही ,
जिस रोज उनसे बिछड़े उस दिन ही मर गए ।

नीरज
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 737

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:05pm

सुंदर प्रस्‍तुति के लिए हार्दिक बधाई, सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 11, 2013 at 3:06pm

आदरणीय नीरज भाई जी तकाबुले रदीफ़ का दोष यहीं ओ बी ओ पर पाठशाला के भीतर ग़ज़ल की बातें में वीनस जी द्वारा बताई गई है एक बार देख लें ये रहा लिंक http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5...

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 2:46pm

जीतेंन्द्र जी बहुत बहुत
अनुग्रहीत हूँ आपकी टिप्पणी से ।

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 2:45pm

आदरणीय अरुण जी आप का बहुत बहुत आभार
तकाबुले रदीफ़ का दोष क्या होता है अगर बताएँगे
तो बहुत मेहरबानी रहेगी ......

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 2:44pm

बहुत बहुत अनुग्रह करता हूँ आदरणीय
अरुण जी आपके अनुमोदन के लिए ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 2:01pm

ता उम्र हमने रखा जिनको सहेज़ कर ,
हाथो से मेरे छूट कर जाने किधर गए ।..........यह शेर बहुत उम्दा है

हार्दिक बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 11, 2013 at 1:07pm

आदरणीय नीरज भाई ग़ज़ल बेहद सुन्दर बन पड़ी है इस हेतु बधाई स्वीकारें मुझे दो अशआरों में तकाबुले रदीफ़ का दोष लग रहा है, कृपया एक बार पुनः देख लें


अरमा अधूरे रह गये दिल में जो प्यार के ,
बनकर के अश्क वो मेरी आँखों में भर गए ।

आये थे दिल की दास्ताँ सुन ने वो शौक से ,
गहराइयों में दिल की झाँका तो डर गए ।

Comment by Abhinav Arun on August 11, 2013 at 12:54pm

आये थे दिल की दास्ताँ सुन ने वो शौक से ,
गहराइयों में दिल की झाँका तो डर गए ।

bahut khoob neeraj ji shaandaar ghazal hui hai badhai . vishes kar is sher ke liye !!

 

Comment by Neeraj Nishchal on August 10, 2013 at 9:03pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुपमा जी

Comment by Neeraj Nishchal on August 10, 2013 at 9:02pm

बहुत बहुत आभार बसंत नेमा जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
20 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service