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रहीम - यार! अपन लोग की लाइफ का कोई गेरन्टी नहीं।
राम - ये सेठ लोग अक्खी दुनिया के हिस्से की गेरन्टी खुद ही ले लेना चाहता है।
-हाँ यार! देख कल अपने सेठ की गाड़ी क्या ठुकी कि बीमा का केस दायर कर दिया। अब साल्ला 4-5 लाख तो मिल ही जायेगा उसको।
-लेकिन तुझे मालूम है? कल अपन के मोहल्ले में अश्फाक मोची का इकलौता लड़का, बेचारा भूख से तड़प कर मर गया।
-काश अपन लोग के भूख भी का बीमा होता यार, तो भूख लगने या मरने पर कुछ तो मिल जाता!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:51pm
आदरणीय सौरभ सर जी! रचना पर आपका आशीर्वाद पाकर मैं अभिभूत हूँ। आपका अनुमोदन मेरे रचनाकार के लिये सम्बलवत् है।
सादर।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:48pm
आदरणीय ब्रिजेश जी! आपने रचना पर अपना महत्त्वपूर्ण समय दिया तो आपका हृदय से आभार।
एक पाठक के नाते मैं आपके विचारों का विरोध नहीं करूँगा। लेकिन मेरा पक्ष यह है कि यह रचना कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं है। क्योंकि सेठ के हाई फाई कार के ऐक्सीडेंट में इतना रकम मिलना नामुमकिन तो बिल्कुल नहीं है।
दूसरी बात भूख से मरने की तो यह मेरे गाँव की ज्वलंत घटना है। बस मैंने स्थान बदल दिया है।
आपने मेरे जैसे नाजीच को ये क्या कह दिया? कहीं मैं अभिमानी न हो जाऊँ। तथापि जैसा स्थान कथा के संवाद की भाषा भी वैसी ही होनी चाहिये। अब कथा मुम्बई के स्लम एरिया की हो और संवाद की भाषा मैं शुद्ध खड़ीबोली लिखूँ तो कथा में प्रभावोत्पादकता या उसे जो कुछ भी कहा जाता हो, शायद नहीं आ पायेगा।
शेष गुरुजन ही कहेंगे
सादर।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:33pm
आदरणीय वसुंधरा जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:32pm
प्रिय भाई केवल प्रसाद जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:30pm
आदरणीय अन्नपूर्णा जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:26pm
प्रिय अरुण भाई जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:25pm
प्रिय अरुण भाई जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:24pm
आदरणीय शिज्जू जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:19pm
आदरणीय विजय निकोर सर जी! आपका आशीर्वाद पाकर मैं धन्य हुआ। रचना की सराहना के आपका हृदय से आभार।
अवश्य सर जी! आपके आदेश का सम्यक परिपालन करूंगा।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:16pm
प्रिय जीतेन्द्र भाई जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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