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आज सच तुझसे कहूँ

बिन तेरे कैसे रहूँ

इक दिन न इक रात

अन्तरंग यह बात...

सांसों में अब मिठास है

कड़वाहट अब न पास है

जब से तू है साथ

अन्तरंग यह  बात...

जुल्फ तेरी  घनघोर घटा

लहराएँ तो सर्द हवा

प्यार तेरा बरसात

अन्तरंग यह बात...

नयन तेरे मधुशाला हैं

बाहें तेरी, मेरी माला हैं

पाक मेरे जज्बात

अन्तरंग यह  बात...

मर जाऊं मिट जाऊं मैं

तुझ संग ही जी पाऊँ मैं

यही मेरे हालात

अन्तरंग यह बात...

मेरा सब कुछ तू ही तू

तेरा सब कुछ मैं ही हूँ

अमर मिलन की रात

अन्तरंग  यह बात...

मैंने तुझसे प्रेम किया

तूने मुझसे प्रेम किया

क्या घोड़े बारात

अन्तरंग यह  बात...

यकीन तू मुझ पर कर ले

मेरे लिए जी ले, मर ले

अब न दूंगा आघात

अन्तरंग यह  बात...

                          -जितेन्द्र 'गीत'

मौलिक / अप्रकाशित

Views: 743

Comment

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Comment by Vinita Shukla on August 5, 2013 at 9:19pm

'मर जाऊं मिट जाऊं मैं

तुझ संग ही जी पाऊँ मैं

यही मेरे हालात

अन्तरंग यह बात...'

सुंदर, भावपूर्ण रचना पर बधाई.

Comment by Meena Pathak on August 5, 2013 at 2:19pm

यकीन तू मुझ पर कर ले

मेरे लिए जी ले, मर ले

अब न दूंगा आघात

अन्तरंग यह  बात....................बहुत सुन्दर, बधाई आप को 

Comment by वेदिका on August 5, 2013 at 1:21pm

सांसों में अब मिठास है

कड़वाहट अब न पास है

जब से तू है साथ

अन्तरंग यह  बात...इस बंद में अच्छी कसावट है

यकीन तू मुझ पर कर ले

मेरे लिए जी ले, मर ले

अब न दूंगा आघात

अन्तरंग यह  बात...

बढ़िया सामंजस्य बिठाया शब्दों का... और भाव पक्ष भी प्रभाव पूर्ण है|

सुंदर रचना के लिए शुभकामनायें  

Comment by Aditya Kumar on August 5, 2013 at 12:54pm

अब न दूंगा आघात

अन्तरंग यह  बात...

सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति 

Comment by Arun Sri on August 5, 2013 at 12:01pm

सुन्दर ! प्रेम से भरी अभिव्यक्ति !

Comment by Shyam Narain Verma on August 5, 2013 at 11:19am

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई.....................

Comment by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 11:11am

बहुत सुन्दर! एक पाठक का कवि बनना ओबीओ की ‘प्रेरणा’ का ही कमाल है। आपको हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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