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!!! चौपाई !!!

//प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं, अन्त में दो गुरू या एक गुरू दो लघु होता है। जगण-121 तथा तगण-221 निषेध है//

मेघ तुम्हारा तन है काला।
मन है निर्मल गंगा वाला।!

चाल तुम्हारी गड़बड़ झाला।
बोल कड़क बिजली भय वाला।।

बरसे झम-झम हवा झकोरे।
रिसता तरल अमी वन भोरे।।

खेत खलिहान हुए विभोरे।
कृषक चले तन हल धर जोरे।।

हरषे रिम-झिम सावन जैसे।
छपरा झर-झर झरता तैसे।।

विरहनियां मन एक अकेली।
भीगे घर-तन हाय! सहेली।।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Abhinav Arun on July 20, 2013 at 2:45pm

आदरणीय श्री केवल जी सुन्दर छंदबद्ध ऋतु  वर्णन मन को मुग्ध कर गया बहुत बधाई !!

Comment by Shyam Narain Verma on July 20, 2013 at 11:24am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.................

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