ओ.बी.ओ. के पावन मंच और गुरुजनों को सादर प्रणाम करता हूँ. समयाभाव के चलते नियमित रूप से मंच से जुड नही पा रहा हूँ इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ और आप सबके बीच कुछ मुक्तक निवेदित कर रहा हूँ. कृपया मार्गदर्शन करें .सादर
क्यूँ कभी प्रेम की ये निशानी लगे.
अश्रुपूरित कभी ये जवानी लगे.
ओस बन खो गये हैं हवा में कहीं,
बूँद पानी की ये जिंदगानी लगे.
प्रेम की बागवानी पुरानी सही.
कृष्ण-राधा की प्यारी कहानी सही.
तुम लिखो फूल को शूल चाहे अनल,
मेरे गीतों में मीरा दीवानी सही .
शब्द से खेलना हमको आता नहीं.
तौल कर बोलना हमको आता नहीं.
जिंदगी प्रेम का गीत है साथियों,
द्वैष विष घोलना हमको आता नहीं.
गीत कविता गजल गुनगुनाता चलूँ.
आँख से आँसुओं को चुराता चलूँ.
प्यार की धुन बनो तो गजल मैं कहूँ,
साथ जन्मों जनम तक निभाता चलूँ.
*मौलिक एवं अप्रकाशित*
शैलेंद्र सिंह 'मृदु'
Comment
आदरणीया coontee muker मैम सराहना एवं उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार
आदरणीय Dr Lalit Kumar Singh जी सराहना एवं उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार
आदरणीय Laxman Prasad Ladiwala सर उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार
आदरणीय बसंत नेमा जी उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार
आदरणीय Jitendra Pastariya जी प्रतिक्रिया व उत्साहवर्धन हेतु कोटिशः आभार
आदरणीय Sumit Naithani जी उत्साहवर्धन हेतु कोटिशः आभार
प्रेम की बागवानी पुरानी सही.
कृष्ण-राधा की प्यारी कहानी सही.
तुम लिखो फूल को शूल चाहे अनल,
मेरे गीतों में मीरा दीवानी सही.......बहुत सरस और सुंदर प्रस्तुति.
वाह वाह वाह , मज़ा आ गया भाई साहेब
चारो मुक्तक सुन्दर बन पड़े है आपके श्री शैल्लेन्द्र सिंह मृदु जी | बहुत बहुत बधाई स्वीकारे
बहुत सुन्दर रचना ...बधाई शुभकामनाये
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