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कुछ झोपड़ों को रोंद के जो घर बना रहा

कुछ झोपड़ों को रोंद के जो घर बना रहा

इस दौर में वो सख्स ही मंजिल को पा रहा

 

जितना नहीं है पास में उतना लुटा रहा

कितना अमीर है ग़मों में मुस्कुरा रहा 

 

अपनी ही गलतियों के हैं कांटे चुभे हमें

वरना सफर तो जिन्दगी का गुलनुमा रहा

 

कहने का शौक औ जुनूं उसका न पूछिए

बेबह्र भी कही ग़ज़ल वो गुनगुना रहा

 

शायद शहद झड़े है उसकी बात से यहाँ

इक झुण्ड मक्खियों सा क्यूँ ये भिनभिना रहा  

 

जब मुल्क में मची है यूँ हर ओर खलबली

तब हर सफ़ेद पोश अपना दम दिखा रहा

 

है रस्म या की कैद ये कपड़ों की क्या कहें 

जो नंगपन विदेशियों का सबको भा रहा

 

जितना किया है उसको उतना मिल गया तो फिर

हाथों की इक लकीर से क्यूँ मात खा रहा

 

कोई न आरजू थी न थी जुस्तजू न जिद

लेकिन तब उसके हाथ में इक झुनझुना रहा

 

लगता है परवरिश में कोई तो कमी थी यार  

बेटा बड़ा हो हमको ही आँखें दिखा रहा

 

शायद दुखा के दिल किसी अपने का है खड़ा

वो “दीप” अपने आप से नज़रें चुरा रहा

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2013 at 1:28pm

आप सभी मित्रों का हृदय से धन्यवाद और सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

आदरणीय वीनस जी सादर
आपकी प्रतिक्रिया का प्रसाद पाकर ये रचना सफल हुई
आपके सुझाव और मार्गदर्शन सदैव अपेक्षित हैं सादर

Comment by वीनस केसरी on July 11, 2013 at 2:15am

अपनी ही गलतियों के हैं कांटे चुभे हमें

वरना सफर तो जिन्दगी का गुलनुमा रहा

वाह भाई क्या कहने ... शानदार

Comment by coontee mukerji on July 4, 2013 at 7:28pm

जीवन की छुपी कड़वाहट के साथ ही अच्छा व्यंग्य भी है.आपकी लेखनी में हमेशा से दम रही है.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 4, 2013 at 5:41pm
आदरणीय..संदीप जी, बहुत खूबसूरत रचना..."जितना नहीं है पास में उतना लुटारहा,

कितना अमीरहै ग़मों में मुस्कुरारहा,,

अपनी ही गलतियों के हैं कांटे चुभे हमें

वरना सफर तो जिन्दगी का गुलनुमा रहा"......हार्दिक बधाइ स्वीकार करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 4, 2013 at 2:18pm

''कहने का शौक औ जुनूं उसका न पूछिए
बेबह्र भी कही ग़ज़ल वो गुनगुना रहा''

आपकी ये बात मेरे जैसे लोगों पे पूरी तरह लागू होती है. यूँ लग रहा है मेरे दिल की बात आपने कह दिया हो
इस ग़ज़ल के लिए आपको बधाई

Comment by अमित वागर्थ on July 4, 2013 at 1:01pm

ati sundar wah.....badhai

Comment by D P Mathur on July 4, 2013 at 8:06am

लगता है परवरिश में कोई तो कमी थी यार
बेटा बड़ा हो हमको ही आँखें दिखा रहा
आदरणीय संदीप जी नमस्कार,
बहुत सटीक व अच्छी रचना !

कृपया ध्यान दे...

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