For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो हँसी गुल संवर रही होगी

वो हँसी गुल संवर रही होगी

चांदनी सी बिखर रही होगी

सारी दुनिया हो बेखबर चाहे

चातकों की नजर रही होगी

जब कमानी वदन किया होगा

थमी-थमी ये सहर रही होगी

रुख हवा ने उधर किया होगा

मलिका-ए-हुस्न वो जिधर होगी

नादाँ दिल मेरा बस यही सोचे

आज की शाम वो किधर होगी

उसके दीदार हो गए जी भर

ये खुशी सोचो किस कदर होगी

“आशु” हर सिम्त सजा फूलों से

चुन रखी कोई तो डगर होगी

(मौलिक व अप्रकाशित)

डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१

Views: 717

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 23, 2013 at 11:07pm

आदरणीया मंजरी जी ...आपके प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद ..बैसे न जाने कैसे रदीफ़ काफिया में परिवर्तन जैसी त्रुटी मुझसे हो गयीए ..आदरनीय गणेश प्रसाद जी एवं आदरनीय केवल जी ने मेरी गलती की तरफ मेरा ध्यान केन्द्रित किया इसके लिए मैं उनका भी ह्रदय से आभारी हूँ ..मैंने ग़ज़ल में परिवर्त कर लिया है ..ओपन बुक ओंन लाइन की यही बात मुझे बेहद आकर्षित करती है की इसमें एक परिवार की तरह से सबकी मदद करते हुए साहित्य उन्नयन का उत्क्रिस्ट प्रयास किया जा रहा है यहाँ कुछ न कुछ सीखने को जरूर मिलता है ...अपने गलती के लिए खेद व्यक्त करने के साथ ही 

Comment by mrs manjari pandey on June 23, 2013 at 4:35pm

    

वो हँसी गुल संवर रही होगी

चांदनी सी बिखर रही होगी

सारी दुनिया हो बेखबर चाहे

चातकों की नजर रही होगी   

       आदरणीय  डॉक्टर आशुतोष जी रचना की मासूमियत  भा गई .

                                  

 
Comment by Shyam Narain Verma on June 21, 2013 at 5:40pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by बृजेश नीरज on June 21, 2013 at 3:58pm

आपके इस प्रयास पर मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 21, 2013 at 9:33am

आदरणीय केवल जी, आपने यथोचित प्रश्न किया है, एकं बार मतला से रदीफ़ , काफिया, बहर निर्धारित हो गए तो हो गए, उसके बाद ग़ज़ल के साथ छेड़खानी अमान्य है . 

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी की रचना ग़ज़ल मानकों पर सफल नहीं है.  

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 21, 2013 at 9:20am

आ0 आशुतोष सर जी, क्षमा के साथ निवेदन करना है- क्या गजल में ’काफिया’ और ’रदीफ’ बदल सकती है? यूं तो गजल के भाव बहुत ही सुन्दर हैं। सादर,

Comment by D P Mathur on June 21, 2013 at 7:31am

नादाँ दिल मेरा बस यही सोचे
आज की शाम वो किधर होगी
उसके दीदार हो गए जी भर
ये खुशी सोचो किस कदर होगी
वाह !

Comment by Sumit Naithani on June 20, 2013 at 8:49pm

नादाँ दिल मेरा बस यही सोचे

आज की शाम वो किधर होगी...sunder

Comment by वेदिका on June 20, 2013 at 8:23pm

अच्छी रचना पर बधाई स्वीकारे आदरणीय आशुतोष जी!

उसके दीदार हो गए जी भर

ये खुशी सोचो किस कदर होगी

 

Comment by vijay nikore on June 20, 2013 at 5:55pm

//नादाँ दिल मेरा बस यही सोचे

आज की शाम वो किधर होगी// .... वाह... वाह... वाह

 

बहुत ही खूबसूरत ख़याल हैं!

 

बधाई।

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service