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ग़ज़ल : जीतने तक उड़ान जिंदा रख

बहर : २१२२ १२१२ २२

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बाजुओं की थकान जिंदा रख

जीतने तक उड़ान जिंदा रख

 

आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं

है जो खुद पे गुमान जिंदा रख

 

तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं

वो पुराना मकान जिंदा रख

 

बेज़बानों से कुछ तो सीख मियाँ

तू भी अपनी ज़बान जिंदा रख

 

नोट चलता हो प्यार का भी जहाँ

एक ऐसी दुकान जिंदा रख

 

जान तुझमें ये डाल देंगे कभी

नाक, आँखें व कान जिंदा रख

---------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 646

Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 2, 2013 at 11:38pm
सादर आभार...आदरणीय धर्मेन्द्र जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 2, 2013 at 10:21pm

बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 2, 2013 at 10:20pm

बहुत बहुत शुक्रिया संदीप जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 2, 2013 at 9:39pm

शुक्रिया ram shiromani साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 2, 2013 at 9:39pm

 बहुत बहुत धन्यवाद Sanjay जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 2, 2013 at 9:38pm

बहुत बहुत शुक्रिया सौरभ जी। स्नेह बना रहे

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 2, 2013 at 9:38pm

धन्यवाद Jitendra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 2, 2013 at 9:37pm

धन्यवाद Ravi जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 2, 2013 at 9:37pm

शुक्रिया aman जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 2, 2013 at 9:37pm

बहुत बहुत शुक्रिया अरुन जी

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