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ग़ज़ल- जिन्दगी तुमसे लड नहीं पाया।।।

जिन्दगी तुमसे लड नहीं पाया ।
हमने आख़िर में ख़ुद को समझाया।।

कुछ नहीं आदमी के हाथों में,
मरते-मरते ये सबने समझाया।।

जिन्दगी भर गरूर रहता है,
मौत के वक़्त ये नहीं पाया।।

जिन्दगी हर कसौटी पर जी,ली,
इसलिये राम,राम कहलाया।।

आदमी लालची ही होता है,
भूल जाता है राम की माया।।

मैं बहकता रहा हूँ उतना ही,
आपने मुझको जितना बहकाया।।

रात से हमको मिलती शीतलता,
रात ने शांत रहना सिखलाया।।

प्रेम परमात्मा से उपजा है,
प्रेम है आत्मा की प्रतिछाया।।


...सूबे सिंह "सुजान"

यह ग़ज़ल मौलिक व अप्रकाशित है। आप सब प्रभुत्वजनों को समक्ष प्रस्तुत है।

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Comment by सूबे सिंह सुजान on June 8, 2013 at 11:36pm
Ashok Kumar Raktale.................
जी आपका आभारी हूँ। आपकी प्रतिक्रिया पर आपका धन्यवाद करता हूँ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on June 8, 2013 at 9:42pm

आदरणीय सुबेसिंह सुजान जी सादर सुन्दर सरल और सीधी सी गजल.

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 7, 2013 at 4:32pm

 वीनस केसरी..                   जी आपका आभारी हूँ। आपकी प्रतिक्रिया पर आपका धन्यवाद करता हूँ।     

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 7, 2013 at 4:32pm
Comment by सूबे सिंह सुजान on June 7, 2013 at 4:31pm

annapurna bajpai..आपकी प्रतिक्रिया  पर आपका धन्यवाद

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 7, 2013 at 4:30pm

Sanjay Mishra 'Habib'....आपका धन्यवाद

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 7, 2013 at 4:29pm
Comment by वीनस केसरी on June 4, 2013 at 9:27pm

बहुत खूब सुजान जी क्या कहने 

भई वाह !!!!

मैं बहकता रहा हूँ उतना ही, 
आपने मुझको जितना बहकाया।।

रात से हमको मिलती शीतलता,
रात ने शांत रहना सिखलाया।।

Comment by विजय मिश्र on June 3, 2013 at 1:13pm
"जिन्दगी हर कसौटी पर जी,ली,
इसलिये राम,राम कहलाया।। "

सचमुच राम सुनना सरल है ,राम बनना अतिजटिल - बहुत सही मार्गदर्शन .
Comment by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 1:33am

बहुत बढ़िया गज़ल हेतु बधाई ।

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