For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माहिया- कजरा ये मुहब्बत का

माहिया पंजाब से उपजा है। जो कि शादी-ब्याह में गाया जाता रहा है।

माहिया का छन्द है मात्रायें- तीन चरणों में पहले में 2211222 दूसरे में 211222 तीसरे में 2211222

************************************

माहिया-1.

कजरा ये मुहब्बत का,

तुमने लगाया है,

आँखों में कयामत का।

2.

कजरा तो निशानी है,

अपनी मुहब्बत की,

चर्चा भी सुहानी है।

3.

आँखों से बता देना,

तुमने कंहाँ सीखा,

ये तीर चला देना।

4.

ख़ुद तीर चलाते हो,

दोष हमारा क्या,

तुम ही तो सिखाते हो।

5.

कुछ सीख नहीं पाया,

नैन मिलाते ही,

उसने मुझे समझाया।

6.

जो सीख नहीं पाये,

उनके लिये समझो,

दुनिया में नहीं आये।

7.

जो आज करोगे तुम,

उसपे ही जीवन भर,

बस राज करोगे तुम।

8.

मत झूठ कभी बोलो,

झूठ भी हत्या है,

हर बात सही बोलो।

9.

जब धूप निकलती है,

बर्फ़ पिघलती है,

फिर इक नही चलती है।

10.

मैदान में आती है,

एक नदी हंसकर,

खामोश हो जाती है।

11.

वो पेड कटाते हैं,

पैसा कमाते हैं,

हरियाली मिटाते हैं।

सूबे सिंह सुजान

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1446

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 10, 2013 at 5:35pm

सूबे सुजान सिंह जी ये ठीक है कहीं कहीं गायन के हिसाब से किसी वर्ण को गिराकर पढ़ सकते हैं जैसे की कई बार ग़ज़लों में भी होता है किन्तु जहां गायन पर लय ठीक आ रही हो तो मात्रा  का ध्यान तो रखना ही चाहिए जैसे इसी बंद को ले लो ---

जो आज करोगे तुम,

उसपे ही जीवन भर,-----यहाँ  १२  मात्राएँ ली हैं आपने ---इस पंक्ति में आप यदि ही हटा देते तो मात्र भी १० हो जाती और लय भी नहीं टूटती,पहली और तीसरी   पंक्ति बिलकुल ठीक हैं 

बस राज करोगे तुम।------

जब धूप निकलती है,

बर्फ़ पिघलती है,--------बर्फ पिघलने पर ,-----इस संशोधन के साथ गाकर देखिये 

फिर इक नही चलती है।

मुझे जो आज तक माहिया के विषय में नियम मालूम थे वही आपसे साझा किये हैं सस्नेह 

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 10, 2013 at 4:49pm

rajesh kumari  आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया प्राप्त हुई.......धन्यवाद..

परन्तु मेरे उस्ताद ने यही मात्रायें बताई हैं जो उपर वर्णित है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2013 at 11:02pm

जो आज करोगे तुम,

उसपे ही जीवन भर,-----यहाँ भी गेयता ठीक नहीं है 

बस राज करोगे तुम।

8.

मत झूठ कभी बोलो,

झूठ भी हत्या है,----१ १ मात्राएँ हो रही हैं 

हर बात सही बोलो।

9.

जब धूप निकलती है,

बर्फ़ पिघलती है,--------बीच की पंक्ति तुकान्त लेंगे तो कैसे गायेंगे ??

फिर इक नही चलती है।

10.

मैदान में आती है,

एक नदी हंसकर,

खामोश हो जाती है।

11.

वो पेड कटाते हैं,

पैसा कमाते हैं,

हरियाली मिटाते हैं।-----आपके कई बन्दों में मात्राएँ विधान के अनुसार नहीं हैं कहीं कहीं गेयता भी प्रभावित हो रही है जिस बंद में आपने तीनो पद में तुकान्त  शब्द लिए हैं ,माहिया के ऊपर आपने बहुत सुन्दर प्रयास किया है ओ बी ओ पर ही मेरे ब्लॉग में आपको माहिया मिलेगा और आदरणीय योगराज जी की प्रतिक्रिया भी जरूर पढ़ें जिसमे उन्होंने काफी स्पष्ट किया है और माहिया गायन की परफोर्मेंस पर एक विडियो भी मिलेगा जिसमे हमने माहिया गया है वक़्त मिले तो देखिएगा बहुत प्यारी विधा है इन बन्दों को सुधारेंगे तो चमक उठेगा ये माहिया। फिलहाल हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर ।  

Comment by राजेश 'मृदु' on June 3, 2013 at 6:04pm

आदरणीय, माहिया बड़ी सुंदर प्रस्‍तुत की हैं आपने, बड़े दिनों बाद किसी माहिया को पढ़कर बहुत अच्‍छा लगा, सादर

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on June 2, 2013 at 1:11pm

आदरणीय सूबे सिंह जी, अच्छी 'माहिया' प्रस्तुत की आपने... हार्दिक बधाई स्वीकारें...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2013 at 12:07pm

बहुत बहुत बधाई, भाई सुजान जी.

आपकी माहिया का कथ्य तो लाज़वाब है. बहुत सुन्दर !

यदि उर्दू नज़्मों या ग़ज़ल के अरुज़ से साधा जाय तो आपके सभी बंद नियमानुसार हैं. लेकिन छंद की नियमावलि के अनुसार इस पर चर्चा हो सकती है जिस ओर भाई बृजेशजी ने इशारा किया है. 

माहिया की संकल्पना पंजाब क्षेत्र और आस-पास की है जहाँ के साहित्य और वहाँ की भाषा पर उर्दू और अरुज़ का अत्यधिक प्रभाव है. अतः मात्राओं (वज़्न) की गणना प्रभावित होतो आश्चर्य नहीं.

मैं आदरणीय योगराजभाईसाहब से इन विन्दुओं पर प्रकाश डालने का सादर अनुरोध करता हूँ.

Comment by aman kumar on June 2, 2013 at 11:30am

  आपका धन्येबाद !

Comment by बृजेश नीरज on June 1, 2013 at 11:46pm

यह तो बहुत सुखद रहा कि आपके माध्यम से एक नई विधा सीखने को मिली। इसके लिए आपका साधुवाद!

 

माहिया के विषय में जो जानकारी मेरे पास उपलब्ध है वह यह है-

//माहिया पंजाब के प्रेम गीतों का प्राण है । पहले इसके विषय प्रमुख रूप से प्रेम के दोनों पक्ष- संयोग और विप्रलम्भ रहे हैं। वर्तमान में इस गीत में सभी सामाजिक सरोकारों का समावेश होता है। तीन पंक्तियों के इस छ्न्द में पहली और तीसरी पंक्ति में १२ -१२ मात्राएँ तथा दूसरी पंक्ति में १० मात्राएँ होती हैं। पहली और तीसरी पंक्तियाँ तुकान्त होती है।//

उदाहरण-

//इसकी परिभाषा से
हम अनजान रहे
जीवन की भाषा से// - प्राण शर्मा

आपके पहले बंद की पंक्तियां और उनकी मात्रायें इस प्रकार हैं।

112  2  12 11 2=13

कजरा ये मुहब्बत का,

112  122  2=11

तुमने लगाया है,

22 2 1211 2=13

आँखों में कयामत का।

इसके आधार पर तो आपकी रचना खारिज मानी जाएगी। आप इस पर प्रकाश डालें तो अच्छा रहेगा। हिन्दी में मात्रा गिराने का कोई नियम नहीं लागू होता।

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 1, 2013 at 10:48pm

thnx  sir 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service