कहते हो देशभक्त ,यदि अपने को आप !
लोग दे उदहारण ,ऐसा कर जाइये !!
तन मन धन सब ,लगाओ देश सेवा में !
लोग आप से ले सीख ,कुछ तो बताइये !!
देश का भी हो विकास ,खुद भी विकास करो !
जग में हो नाम ऐसे ,मान को बढ़ाइये!!
मात्र भाषणों से काम, चल नहीं सकता है !
कुछ तो यथार्थ आप, कर के दिखाइए!!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
bhai ram shiromani ji bahut badhiya ghanaxari likhi hai apko badhi .
मै आपसे सहमत हूँ आदरणीय सौरभ जी, आगे से ध्यान दूंगा ऐसी गलती ना हो //क्षमा प्रार्थी हूँ //
आप ही नहीं कोई हो, यदि नियमों को स्थूल रूप में ले तो कई अवसर आयेंगे जब एक रचनाकार के तौर पर झुंझलाहट होगी या उसको ’निभाने’ की ’विवशता’ सामने आयेगी.
किन्तु, यदि मंच के नियमों के अंतर्निहित भावों को हृदयंगम करें तो इन नियमों की व्यापकता और सात्विकता के प्रति स्वयं ही हृदय में श्रद्धा के भाव उपजेंगे.
आवश्यक क्या है, भाईजी , पद्य के मूल और गूढ स्वरूप को समझना, तदनुरूप अभ्यास करना, या अपनी ’अधपकी’ रचना को व्यापक करने की बाल सुलभ शीघ्रता करना ?
मैं जानता हूँ, किसी प्रस्तुति में सम्पूर्णता सम्भव नहीं, किन्तु किसी व्यंजन को उसके प्रतीत होते अधपकेपन के बावज़ूद क्या हर जगह, हर किसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिये ?
मैं आपकी इस रचना को ’अधपकी’ क्यों कह रहा हूँ, यह आपको अब खूब स्पष्ट है. क्योंकि हमारी आपस में फोन पर बात हो चुकी है जब मैं मुम्बई में था.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय भाई ब्रिजेश जी हार्दिक आभार ///सादर
आदरणीय सौरभ जी ,यह रचना पहले ओ बी ओ पर पोस्ट किया था फिर फेसबुक पे ////नियम का पुर्णतः पालन किया था मैंने //रही बात शीघ्रता की तो आगे से ध्यान दूंगा ///सादर
बहुत बधाई आपके इस प्रयास पर!
इस सामाजिक हो चुकी प्रस्तुति पर अब कुछ भी कहना उचित नहीं.
कुछ जगहों पर इसे वाह-वाह मिल चुकी है, तो शायद यह रचना वाह-वाह के ही लायक होगी.
शुभेच्छाएँ
हार्दिक आभार आदरणीया आशुतोष जी //सुधारने का प्रयास करता हूँ ///सादर
हार्दिक आभार आदरणीया कुन्ती जी ///सादर
अति सुन्दर राम जी किन्तु चतुर्थ चरण के एक बार पुनः देखिये प्रवाह भंग है......वैसे तो लगभग हर चरण में प्रवाह भंग है किन्तु इसमें कुछ अधिक खल रहा है
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