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निवेदन (घनाक्षरी छंद )

कहते हो देशभक्त ,यदि अपने को आप !
लोग दे उदहारण ,ऐसा कर जाइये !!
तन मन धन सब ,लगाओ देश सेवा में !
लोग आप से ले सीख ,कुछ तो बताइये !!

देश का भी हो विकास ,खुद भी विकास करो !
जग में हो नाम ऐसे ,मान को बढ़ाइये!!

मात्र भाषणों से काम, चल नहीं सकता है !
कुछ तो यथार्थ आप, कर के दिखाइए!!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित

Views: 588

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Comment by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 1:40am

bhai ram shiromani ji bahut badhiya ghanaxari likhi hai apko badhi .

Comment by ram shiromani pathak on June 2, 2013 at 12:37pm

मै आपसे सहमत हूँ आदरणीय सौरभ जी, आगे से ध्यान दूंगा ऐसी गलती ना हो //क्षमा प्रार्थी हूँ //


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2013 at 12:25pm

आप ही नहीं कोई हो, यदि नियमों को स्थूल रूप में ले तो कई अवसर आयेंगे जब एक रचनाकार के तौर पर झुंझलाहट होगी या उसको ’निभाने’ की ’विवशता’ सामने आयेगी. 

किन्तु, यदि मंच के नियमों के अंतर्निहित भावों को हृदयंगम करें तो इन नियमों की व्यापकता और सात्विकता के प्रति स्वयं ही हृदय में श्रद्धा के भाव उपजेंगे.

आवश्यक क्या है, भाईजी , पद्य के मूल और गूढ स्वरूप को समझना, तदनुरूप अभ्यास करना, या अपनी ’अधपकी’ रचना को व्यापक करने की बाल सुलभ शीघ्रता करना ?

मैं जानता हूँ, किसी प्रस्तुति में सम्पूर्णता सम्भव नहीं, किन्तु किसी व्यंजन को उसके प्रतीत होते अधपकेपन के बावज़ूद क्या हर जगह, हर किसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिये ?

मैं आपकी इस रचना को ’अधपकी’ क्यों कह रहा हूँ, यह आपको अब खूब स्पष्ट है. क्योंकि हमारी आपस में फोन पर बात हो चुकी है जब मैं मुम्बई में था.

शुभेच्छाएँ

Comment by ram shiromani pathak on June 2, 2013 at 12:16pm

आदरणीय भाई ब्रिजेश जी हार्दिक आभार ///सादर 

Comment by ram shiromani pathak on June 2, 2013 at 12:15pm

आदरणीय सौरभ जी ,यह रचना पहले ओ बी ओ पर पोस्ट किया था फिर फेसबुक पे ////नियम का पुर्णतः पालन किया था मैंने //रही बात शीघ्रता  की तो आगे से ध्यान दूंगा ///सादर 

Comment by बृजेश नीरज on June 2, 2013 at 9:37am

बहुत बधाई आपके इस प्रयास पर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 7:10pm

इस सामाजिक हो चुकी प्रस्तुति पर अब कुछ भी कहना उचित नहीं.

कुछ जगहों पर इसे वाह-वाह मिल चुकी है, तो शायद यह रचना वाह-वाह के ही लायक होगी.

शुभेच्छाएँ

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 4:54pm

हार्दिक आभार आदरणीया आशुतोष जी //सुधारने का प्रयास करता हूँ ///सादर

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 4:54pm

हार्दिक आभार आदरणीया कुन्ती जी ///सादर

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 31, 2013 at 4:50pm

अति सुन्दर राम जी किन्तु चतुर्थ चरण के एक बार पुनः देखिये प्रवाह भंग है......वैसे तो लगभग हर चरण में प्रवाह भंग है किन्तु इसमें कुछ अधिक खल रहा है

कृपया ध्यान दे...

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