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सुविधा 
बेटा तुम्हारी माँ की तबियत ठीक नहीं है तुम्हे देखना चाहती है .पिता ने फोन पर बेटे से गुजारिश सी की।
हाँ पापा मुझे भी माँ को देखने आना है अगले हफ्ते दो छुट्टी हैं उसमे आने की सोच रहा था लेकिन रिजर्वेशन नहीं मिल रहा है।बेटे ने अपनी मजबूरी बताई।वैसे में कोशिश कर रहा हूँ अगले महीने फिर दो छुट्टी एक साथ आ रही हैं अभी से रिजर्वेशन देख कर रखता हूँ अगर कोई इम्पोर्टेन्ट मीटिंग नहीं रही तो अगले महीने आता हूँ।आप माँ का ख्याल रखिये।
ठीक है बेटा पिता कुछ कहते कहते इतना ही कह पाए।
अगला महिना आने से पहले ही माँ चल बसीं।बेटे को सूचना दी गयी।बेटे ने ताबड़तोड़ प्लेन का टिकिट बुक करवाया और वर्किंग डे में ही अंतिम संस्कार से पहले माँ के दर्शन करने पहुँच गया।

 kavita verma 

aprakashit aur moulik 

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Comment by बृजेश नीरज on May 11, 2013 at 1:40pm

अच्छी है। बधाई!

Comment by Kavita Verma on May 11, 2013 at 1:30pm

aap sabhi aadarneey jano ka bahut bahut abhaar ....

Comment by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:39pm

मर्मस्पर्शी रचना ............सुन्दर प्रयास !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 10, 2013 at 5:14pm

मार्मिक रचना हेतु सादर बधाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 10, 2013 at 12:07am

बिलकुल सही दूरियाँ या मजबूरियाँ हो तब ऐसा होता है. सुन्दर मार्मिक रचना. 

Comment by coontee mukerji on May 9, 2013 at 11:03pm

कविता जी , ऐसे लोग तब पछ्ताते जब उनकी संतान उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, ऐसी घटनाएँ अब एक फेंन्शन बन गया है . सादर /

कुंती.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 9, 2013 at 10:32pm

आ0 कविता जी,  वास्तव में हम अत्यधिक सुविधाओं में अपना वजूद ही खो बैठे हैं।  अतिसुन्दर कहानी। तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारें।   सादर,

Comment by manoj shukla on May 9, 2013 at 6:37pm
यह आज का कटु सत्य है और आपकी यह रचना सीधे ह्रदय को चोट करती है. आदर्णीया ...सादर बधाई स्वीकार करें
Comment by KAVI DEEPENDRA on May 9, 2013 at 2:40pm

आज कल की बेहद कड़वी सच्चाई......बहुत खूब मोहतरमा.....बधाई....

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