For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत वो गा रहे // कुशवाहा //

गीत  वो गा रहे // कुशवाहा //

-----------------

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प झरें मुखार से 

तलवार देखते रहे 

------------------

मंच था सजा हुआ 

चमचों से अटा हुआ 

गाल सब बजा रहे 

भिन्न राग थे गा रहे 

सुन जरा  ठहर गया

भाव लहर में बह गया

चुनाव है  था विषय

आतुर सुनने हर शय

शब्द जाल फेंक वे 

जन जन  फंसा रहे 

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प झरें मुखार से 

तलवार देखते रहे 

----------------------- 

बढ़ बढ़ बली आये 

चढ़ चढ़ मंच धाये

पांच साल क्या किया 

उपलब्धि गिनवाये रहे 

जिसे घोटाला कह रहे 

घोटाला नहीं विकास है 

स्विस बैंक जमा धन 

अँधेरा नहीं प्रकाश है 

सुरक्षित यहाँ धन नही 

अधिक ब्याज ला रहे 

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प झरें मुखार से 

तलवार देखते रहे 

-------------------

थी सडक कहीं नहीं 

बिजली का पता नहीं

जगह जगह गड्ढे थे 

शराब के अड्डे थे 

दूकान पर राशन नहीं 

स्वच्छ प्रशासन नही 

धन्य वाद आपका 

हम  पे  एतबार किये 

गाड़ दिये  खम्बे सभी 

तार अभी लगवाय रहे 

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प झरें मुखार से 

तलवार देखते रहे 

------------------

अपराध में सानी नही

धन्धे में  बेईमानी नही 

टू जी हो या थ्री जी 

कोयला घोटाला पी 

देश सुरक्षा में भी 

सेंध लगवाय रहे 

रहने को घर नही 

पीने  को पानी नही

वाल मार्ट खोल कर 

दारू पानी बिकवाय रहे 

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प झरें मुखार से 

तलवार देखते रहे 

---------------------   

सोना महंगा हुआ 

चांदी  लुभाय रही 

दलहन उत्पादन घटा 

वनरोज खाय रही 

योजनाएं चली बहुत 

मनरेगा छाय रही 

बन्दर बाँट होये न 

फेल हुई हाय री 

गैस खाद महंगा किया 

सब्सिडी हटवाय रहे 

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प झरें मुखार से 

तलवार देखते रहे 

--------------------

बिन दवा गरीब मरे 

बड़े लोग पाय रहे 

दाने दाने मोहताज 

अन्न को सडाय रहे 

स्कूल में शिक्षक नहीं 

लैपटॉप बंटवाय रहे 

विदेश नीति में हम 

सास बहू रिश्ता निभाय रहे 

छीने जमीन  कोई 

शीश कटवाय रहे 

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प झरें मुखार से 

तलवार देखते रहे

-------------------- 

इस बार वोट दो 

पांच वर्ष न आउंगा 

दूर से तकोगे 

हाथ नही आउंगा

बैठ सदन में 

ठंडी हवा खाऊंगा 

भूलूँगा मैं तुम्हें 

तुम्हें याद आऊंगा 

मदारी बन मैं 

नाच  खूब नचाउंगा  

नख से शीर्ष तक 

पोशाक देखते रहे 

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प झरें मुखार से 

तलवार देखते रहे

-------------------- 

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

२-५-२०१३ 

मौलिक /अप्रकाशित 

 

Views: 549

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 9, 2013 at 5:02am

श्रद्धेय महोदय, सादर अभिवादन!

जनता जनार्दन देख रही नीचे से
नेता जी मंच पर, वार करे पीछे से
मौका जो मिल गया
नेता सब मिल गया
संसद से सड़क पर कर रहे वार हैं.
जनता बेचारी है,
भूख से ही यारी है
नागनाथ, साप नाथ
कमल को मरोड़े हाथ
कैसी लाचारी है!
नेता न सीखेंगे
दांत दर्द चीखेंगे
पप्पू से फेंकू नपे
अब अगली तैयारी है ..
इसके बाद आप दिखें
मन में संताप रखे
.........
इस बार वोट दो
पांच वर्ष न आउंगा
दूर से तकोगे
हाथ नही आउंगा
बैठ सदन में
ठंडी हवा खाऊंगा
भूलूँगा मैं तुम्हें
तुम्हें याद आऊंगा
मदारी बन मैं
नाच खूब नचाउंगा
नख से शीर्ष तक
पोशाक देखते रहे
गीत वो गा रहे
प्रचार देखते रहे
पुष्प झरें मुखार से
तलवार देखते रहे
...

बचा नहीं विकल्प है 

समय बचा अल्प है 

बुद्धिजीवी सोयेंगे 

पांच वर्ष रोयेंगे 

विपदा को ढोयेंगे 

आपा भी खोयेंगे 

कैसी लाचारी है!....

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 1:05pm

कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे की तर्ज पर सुन्दर काव्य रचना में नेताओं को लताड़ लगाई है आपने,एकाध जगह टंकन त्रुटी है वरना सुन्दर रचना बन पड़ी है सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा साहब.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 5, 2013 at 12:26am

आदरणीय कुशवाहा जी, मधुर व्यंग्य, कटाक्ष, हास्य, यथार्थ और कटु सत्य को एक साथ ही व्यक्त करती सटीक रचना हेतु बधाई स्वीकार करें

Comment by बृजेश नीरज on May 4, 2013 at 11:53pm

आदरणीय प्रदीप जी आप जिस तल्लीनता से रचनाकर्म में लगे हुए हैं। वह श्रम इस रचना में साकार हो रहा है। आपको बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए।

Comment by coontee mukerji on May 3, 2013 at 9:08pm

इस गीत को सुनने के बाद और कोई गीत सुनने  की  जरूरत  नहीं है मगर  विडम्बना तो यहीं है कि जनता जनार्दन बहुत भुलक्कड़  और उदार दिल है.  ...  बहुत  सुंदर / सादर  /  कुंती.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 3, 2013 at 8:44pm

आ0 कुशवाहा जी, करारा व्यंग।
’’विदेश नीति में हम
सास बहू रिश्ता निभाय रहे
छीने जमीन कोई
शीश कटवाय रहे
गीत वो गा रहे ’’...। हार्दिक बधाई स्वीकारें..इस जागरण के लिए। सादर,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 6:43pm

आदरणीय विजय मिश्र जी 

सादर 

आपने मेरे प्रयास को सराहा. अब लगा की बात पहुंचेगी 

आभार 

Comment by विजय मिश्र on May 3, 2013 at 6:32pm
" बिन दवा गरीब मरे
बड़े लोग पाय रहे
दाने दाने मोहताज
अन्न को सडाय रहे
स्कूल में शिक्षक नहीं
लैपटॉप बंटवाय रहे
विदेश नीति में हम
सास बहू रिश्ता निभाय रहे
छीने जमीन कोई
शीश कटवाय रहे "
---- अन्यायी ,अराजक ,बेईमान और नीतिहीन छल-छद्मी नेताओं पर सटिक कटाक्ष है और आपकी कविता तो देश की दुर्दशा का जीवन्त आईना है जिसमें दिखने योग्य हर चीज धुँधली लग रही है . साधुवाद कुशवाहा जी .
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 11:34am

आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी 

सादर 

मेहनत सफल हुई. 

आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2013 at 10:43am

इस हास्य कविता का अलग ही मजा है. आजकी प्रशासनिक व्यवस्था से खार खाये मध्यम वर्गीय समाज की आंतरिक पीड़ा उभर कर दीखती है.बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय.

बहुत खूब !..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  2122 2122 2122…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 हंस उड़ने पर भला तन बोल क्या रह जाएगाआदमी के बाद उस का बस कहा रह जाएगा।१।*दोष…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"नमन मंच 2122 2122 2122 212 जो जहाँ होगा वहीं पर वो खड़ा रह जाएगा ज़श्न ऐसा होगा सबका मुँह खुला रह…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
5 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service