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किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से - वीनस

मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से

महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से

उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से

उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से

ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको

मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से

उतारो भी मसीहाई का चोला
हँसा बोला करो हर आदमी से

खबर से जी नहीं भरता हमारा

मजा आता है केवल सनसनी से

अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से

ये बेदारी, ये बेचैनी का आलम
मैं आजिज आ गया हूँ शाइरी से



बह्र-ए-हजज मुसद्दस महज़ूफ़
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by coontee mukerji on April 20, 2013 at 1:10am

वीनस केसरी जी , नज़ाकत भी . गीले भी शिकवा भी तीर भी तलवार भी ........माशाल्लाह ! बहुत बधाई .


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Comment by rajesh kumari on April 19, 2013 at 3:25pm

अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं 
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से

उजाला बांटने वालों के सदके 
हमारी निभ रही है तीरगी से ------ पूरी ग़ज़ल ही शानदार है बस इन दो शेरो की क्या तारीफ करूँ दिली दाद कबूल करें 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 19, 2013 at 11:14am

क्या बात है जय हो 

इक इक अशआर शानदार है साहब 

इस शानदार और जानदार ग़ज़ल के हर अशआर पे ढेरों दाद हाजिर हैं 

क़ुबूल फरमाइए सादर 

जय हो 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 19, 2013 at 11:08am

आदरणीय, वीनस केसरी जी!    बेहद सुन्दर गजल।.’अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से।’  वाह सर जी!   बहुत बहुत हार्दिक बधाई स्वीकारें...। सादर,

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on April 19, 2013 at 11:06am

मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से 
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से .......................भाई लाजवाब मतला कहा है। 

महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से .......मर जाऊँ  इस सादगी पे...

उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है 
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से ...भाई क्या करोगे जमाने का यही दस्तूर  है बिना प्यास के कोई कहाँ जाता है कुएं के पास 

उजाला बांटने वालों के सदके 
हमारी निभ रही है तीरगी से ..............निभाए जाओ ॥बढ़िया है 

ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको

मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से...............वाह वाह वाह....काश ऐसा मैं भी कह पाता 

उतारो भी मसीहाई का चोला 
हँसा बोला करो हर आदमी से........शिकायत पे गौर किया जाएगा.....हाहाहहहह बहुत उम्दा 

खबर से जी नहीं भरता हमारा

मजा आता है केवल सनसनी से ......भाई आजकल के टीवी प्रोग्राम का अ सर है 

अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं 
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से..............ये अंदाजे बयान पसंद आया ...बहुत बढ़िया 

ये बेदारी, ये बेचैनी का आलम
मैं आजिज आ गया हूँ शाइरी से.........भाई ऐसा ज़ुल्म न ढाओ ...अगर आजिज़ आ जाओगे तो इतने मुकम्मल ग़ज़ल कैसे मिलेगी पढ़ने को...

वीनस भाई एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए  दिली दाद कुबूल करें !

Comment by Shyam Narain Verma on April 19, 2013 at 10:29am

bahot khoob.................

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