अभिलाषा
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मेरी अब यही एक अभिलाषा है
कि दूर क्षितिज में जाने से पहले
इन बेनाम-लावारिस कविताओं का
नामकरण करता चलूँ
श्रद्धेय, मैं और शरद अभी साथ बैठकर आपकी पंक्तियाँ पढ़ रहे थे. आपका क्षितिज अभी दूर है....हमें आपके आकाश का हिस्सा बनना है आपकी भावनाओं के उड़नखटोले में बैठकर. आपके कमण्डल में पानी कभी खत्म न हो.......यह निश्चित रूप से हमारी ही नहीं, पूरे ओ.बी.ओ. परिवार की " अभिलाषा " है.
लाज़बाब ...बहुत ही खूबसूरत एवं भावनापूर्ण अभिव्यक्ति .......
आदरणीया वंदना जी:
आपने कहा ....//अद्वितीय अभिव्यक्ति! //
आपकी सराहना मेरा मनोबल है।
हार्दिक धन्यवाद।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीया गीतिका जी:
कविता के भाव आपको अच्छे लगे,
मेरा लिखना सार्थक हुआ।
आपका हार्दिक आभार।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीया विजयाश्री जी:
//अन्तःमन से निकली भावपूर्ण अभिव्यक्ति//
आपसे मिली सराहना से मनोबल बढ़ा..
आपका हार्दिक धन्यवाद।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी:
//हम आपके उन्हीं शब्दों के रथ पर बैठकर उड़ चलते हैं।
जहाँ हमें आपके अनुभवों के मोती मिलते हैं॥//
आपकी प्रतिक्रिया में हमें आपसे मोती मिले ... आपका
हार्दिक आभार। मित्र, ऐसे ही स्नेह बनाए रखें।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय विजय निकोर जी बहुत भावपूर्ण संस्मरण को शब्दों में बांधा है हर बार की तरह दिल को छूती प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको। कांटे वाली पंक्तियाँ बरबस मुंशी प्रेम चंद जी की कहानी बुद्धू का काँटा की याद दिलाती हैं।
आदरणीय राजेश जी,
// मन के हर परत को छूती आपकी रचना बहुत ही अच्छी लगी //
आपकी इस अच्छी सराहना के लिए मेरा हार्दिक आभार।
स्नेह बनाए रखें।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय लक्ष्मण जी:
// आपकी रचन्नाए अंतर्मन के सुनहरे पलों के भाव संजोये ही होती है, और अंतर्मन से
लोखी रचना सुन्दर सुन्दर रंग समाते है //
मित्र, आप मेरे कविता के भावों में जो गहराई देखते हैं वह आपके ही मन की गहराई है,
जो उनको समझ पाती है। आपका कोटिश धन्यवाद।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
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