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सदा चैन की बंशी बजती , जब घर में खुशहाली हो |

घरनी -कविता |
सदा चैन की बंशी बजती , जब घर में खुशहाली हो | 
जंगल में मंगल हो जाता , साथ अगर घरवाली हो |
एक म्यान में दो तलवारें , चैन कहाँ मिल पायेगा |
यदि यार का दखल हो घर में , बसा घर उजड़ जाएगा | 
जब दो फूल एक भौंरा हो , कहाँ मजा है जीवन में |
दो बुलबुल बस एक फूल हो , कैसा लगता  उपवन में | 
ख़ुशी का नजारा कब रहता , दो शेर सदा लड़ते हैं | 
काट मार घायल हो जाते , गिरे  तड़पते रहते हैं |
घरनी है सारे जीवन की , ऐसा अटूट नाता है |
कच्चे धागे का बंधन है , साथ  सुखमय बनाता है |
बिना घरनी का कौन खुश है , सुख जो साथ निभाता है | 
जीता तो  है  चर  जंगल में , जो पाया वो खाता है | 
खुशी ख़ुशी साथी  हो हरदम , ऐसी घरनी प्यारी हो | 
सुख दुःख में सदा साथ रहे , हर अदा से न्यारी हो |
जीवन रहे सदा हरा भरा , पूजा के अधिकारी हो |
वर्मा खिला ही रहे उपवन , घरनी साथ हमारी हो |
श्याम नारायण वर्मा 

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 11:01am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी! सादर प्रणाम
बहुत ही सुंदर रचना हुई है सादर बधाई स्वीकरें
कहीं कहीं प्रवाह बाधित है उसके लिए मैं विनय भाई साहब से सहमत हूँ
सादर

Comment by coontee mukerji on April 10, 2013 at 11:22pm

वर्मा जी , आपकी कविता में जुते भीगोकर मारने वाली बात हुई है. कहीं कहीं तीखे व्यंग के साथ ही साथ कवि ह्रदय की आंतरिक पीड़ा

भी झलक रही है.धन्यवाद.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 10, 2013 at 3:00pm

सुन्दर भाव अभ्व्यक्ति के लिए बधाई श्री श्याम नरेन वर्मा जी 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 10, 2013 at 1:51pm
श्याम नारायण वर्मा जी! आपने बहुत ही सुन्दर भावभूमि पर अपनी लेखनी चलायी है, जिसके लिये आपको बधाई।लेकिन आदरणीय केवल तुकबंदी कविता नहीं होती, तुकान्तक कविता में भी कम से कम प्रति चरण मात्राओ का तो ध्यान रखना ही चाहिये।
बात अन्यथा नहीं लेंगे।
सादर।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 10, 2013 at 1:49pm
श्याम नारायण वर्मा जी! आपने बहुत ही सुन्दर भावभूमि पर अपनी लेखनी चलायी है, जिसके लिये आपको बधाई।लेकिन आदरणीय केवल तुकबंदी कविता नहीं होती, यदि तुकान्तक कविता में भी कम से कम प्रति चरण मात्राओ का तो ध्यान रखना ही चाहिये।
बात अन्यथा नहीं लेंगे।
सादर।
Comment by वेदिका on April 10, 2013 at 1:37pm

प्रेम त्रिकोण को दर्शाती हुयी ......अंतर्मन मन को उद्देलित करती हुयी ....प्रेम देकर प्रेम की चाहना करती हुयी रचना ....
शुभकामनायें आदरणीय श्याम जी!
सादर गीतिका 'वेदिका'

Comment by ram shiromani pathak on April 10, 2013 at 12:09pm

बहुत सुन्दर बहुत बहुत बधाई

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