For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-शख़्स जब वो इधर से गुजरा है

शख़्स जब वो इधर से गुजरा है
एक पत्थर जरूर पिघला है।


दिल मेरा बार-बार धडका है,
क्यूँ मुझे कोई डर सा रहता है।


मेरा महबूब मेरा इतना है,
ज़िन्दगी भर की कोई आशा है।


चाँदनी आज और बढ गई है,
चाँद पर कोई जाके बैठा है।


कौन समझा है इस सियासत को,
इस सियासत का राज़ गहरा है।


आदमी कपडे तो पहनता है,
जबकि इसका वज़ूद नंगा है।


रात सारी टहल-टहल कर वो,
अपनी खामोशियों से मिलता है।

  • सूबे सिंह सुजान

Views: 513

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 24, 2013 at 9:22pm

सूर्य बाली, योगी सारस्वत,सौरभ जी धन्यवाद

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 24, 2013 at 9:22pm

सौरभ जी आपकी बात पर ध्यान देना है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 8:31pm

वाह क्या खूब मतला है ! वाह-वाह !

आखिरी शेर भी बहुत खूबसूरत बन पड़ा है. उसके लिए विशेष बधाई. 

दोनों मिसरे का है से अंत होने के कारण चाँदनी वाले शेर में तकाबुलेरदीफ़ का दोष है.

आदमी कपड़े तो पहनता है.. भी हुस्ने मतला ही है.  लेकिन उसका स्थान बदल जाने से दोष युक्त हो गया है.  इसमें भी तकाबुलेरदीफ़ का ही दोष है.

Comment by Yogi Saraswat on March 15, 2013 at 11:57am

आदमी कपडे तो पहनता है,
जबकि इसका वज़ूद नंगा है।
रात सारी टहल-टहल कर वो,
अपनी खामोशियों से मिलता है।

बहुत सुन्दर ! एक एक अश'आर अपने आपमें पूर्ण ! बहुत बेहतरीन

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 15, 2013 at 8:15am

वाह सुजान जी क्या खूब ग़ज़ल काही है॥हर एक शेर लाजवाब...दाद कुबूल करें !

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 15, 2013 at 7:25am

aashish ji,,  thanks

चाँदनी आज और बढ गई है,
चाँद पर कोई जाके बैठा है।...........ye sher muje bhi pyara lagta hai

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 14, 2013 at 11:43pm

चाँदनी आज और बढ गई है,
चाँद पर कोई जाके बैठा है।

क्या कहने जनाब.. वाह वाह !!!

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 14, 2013 at 11:02pm

हां वीनस जी,,काफ़िया में है

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 14, 2013 at 10:58pm
thanks venus kesari bhi ji.....aapki bat par dyan de rha hun..........
Comment by वीनस केसरी on March 14, 2013 at 1:48pm

वाह बहुत खूब .......

रात सारी टहल-टहल कर वो,
अपनी खामोशियों से मिलता है।

इस हासिले ग़ज़ल शेअर के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

मतला और हुस्ने मतला के बाद कुछ अशआर के उला में रदीफ, और कुछ में काफिया का प्रयोग किया गया है उन पर नज़रे सानी फरमा लें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service